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संस्कृत साहित्य का इतिहास के पूरक है । एक के खिला दूसरा अपूर्ण रहता है। इसके अतिरिक्त, इसमें खुत्र और भाष्य दोनों स्वयं ग्रन्थ-चियता के लिखे हुए हैं। कहीं कहीं भाष्य में उपनिषद् और ऊर्ध्वकालीन ब्राह्मणों की भाषा का गङ्गढङ्ग देखने में श्रा जाता है। ग्रन्थ में श्रानि से अन्त तक स्थूलालेख्य (Plan) और निर्माण की श्राश्चर्यजनक एकता पाई जाती है । कुछेक पद पाणिनि के व्याकरण के नियमों का उल्लङ्घन करते हुए देखे जाते है। उदाहरणार्थ, औपनिषक के स्थान पर श्रोपनिषदिक, रोचक के रोचयन्ते और चातुरधिका के चतुरक्षिा आया है।