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काल
वेदासरसमवायप्रविष्टो भारतोवंशः। (प्रतिज्ञायौगन्धरायण)
(६) एक कथा को कहते हुए बाक्य का प्रारम्भ इस प्रकार होता है:-काम्पिल्या का एक ब्रह्मदत्त राजा था। यह शैली जातकों में प्रषिद्ध है।
(७) पंचरान का कथानक उस कथा' पर अवलम्बिा है जो वर्तमान महाभारत में नहीं मिलती।
(E) इन नाटकों में उस समाज का चित्र है जिसने प्राचीन रूदि के अनुसार बौद्ध बातें अपना जी थीं। यथा, प्रतिज्ञा यौगन्धरायण में श्रमएक का चरित्र देखिये । साथ ही हमें बौदधर्म विरोधी मनोवृत्ति का भी प्रामास मिलता है ।
(8) इमां लागापर्यन्तां हिमवद्विन्ध्य कुण्डलाम् । महीमेकातपत्राको राजसिंहः प्रशास्तु नः॥
इस श्लोक में 'एकतापत्र' राज्य का उल्लेख है जो हिमालय से विन्ध्य तक और समुद्र पर्यन्त फैला हुआ था। ऐसा समय ई०पू० ३२५ और १०० के मध्य पड़ता है।
(१०) श्लोक छन्द की बहुलता और पाणिनि के नियमों की उपेक्षा, जैसा पहले कहा जा चुका है, प्राचीनता के चिन्ह है । इन सब बातों के
आधार पर यह प्रतीत होता है कि पं. गणपति शास्त्री का बताथा हुधा ईसा पूर्व की ४र्थ शताब्दी का कान संमवतया ठीक है। यह आस के काल की पर सीमा ( Upper limit ) है।
१. पंचरात्र में कहा गया है कि दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को वचन दिया था कि यदि अज्ञातवास में रहने वाले पाण्डवो का पता पाच रातों में लग जाए तो वह पाण्डवो को राज्य में भागहर बना लेगा। साथ ही यह भी कहा गया है कि अभि-मन्यु दुर्योधन की ओर से विराट की सेना से लड़ रहा था और विराट की सेना के लोगों ने उसे पकड़ लिया था। २ ऐसा काल शुङ्ग र करवों के बौद्ध-विरोधी साम्राज में था।