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सस्कृत साहित्य का इतिहास (१) भरत वाक्य अपनी प्रारम्भिक अवस्था में है।
(२) यवनिका शब्द पर्दे ( Curtain ) के लिये नहीं, धूघट ( Veil) के लिये पाया है।।
(३) नए अंक के साथ घटनास्थल भी बदल जाता है, किन्तु घटना स्थल के लिये कोई संकेत नहीं दिया गया है।
(५) रुद्रदामा (ईसा की दूसरी शताब्दी) के शिलालेखों में जो कृत्रिम काव्य शैली मिलती है वह इनकी भाषा में नहीं है। इसमें व्यवहार-च्युत (पुराने ) व्याकरणीय प्रयोग मिलते हैं और अनुप्रास या लम्बे समास नहीं हैं।
() इनमें अप्रचलितह प्रयोग ( Archaic Expressions) मिलते हैं । उदाहरणार्थ ;
(क) राजा (Prince) के अर्थ में आर्यपुत्र का प्रयोग हुआ है। ऐसा ही प्रयोग अशोक के सिद्धपुर वाले शिलालेख में भी मिलता है।
(ख) महाब्राह्मण शब्द का प्रयोग अवारज के अर्थ में नहीं, अपितु वस्तुतः श्रादर सूचित करने के लिये हुआ है।
(ग) अक्षिणी का प्रयोग भूतिनी के अर्थ में हुश्रा है । प्रारम्भिक बौद्ध ग्रन्थों में भी इस शब्द का ऐमा ही प्रयोग देखा जाता है।
(घ) भरतों के घर (वंश) को भास ने वेदों का घर बताया है।
हुआ है।
का प्रयोग
बाड यायों
हित रूप है । यह कहना कठिन है कि ऐसा करने में प्रयोजन क्या थाकायार्थ की चोरी, या अपूर्ण ग्रन्थ को पूरा करना। __यदि कभी अन्य नए अन्वेषणों से चारुदत्त के विरुद्ध ही सामग्री मिलती रही अर्थात् यह सिद्ध हुआ कि चारुदत्त मौलिक कृति नहीं है (तब भी हम अपने उपयुक्त परिणाम से अनबद्ध यह कल्पना कर सकते हैं कि चारुदत्त मे अपने उपजीव्य मौलिक ग्रन्थ का पर्याप्त अंश सुरक्षित है जिस पर मृच्छकटिक आश्रित है।