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संस्कृत साहित्य का इतिहास
सूत रोमहर्षण ने अपने पुन ( सौति) को या ऋषियोंको सुनाए हैं
और जिन में महाभारत के युद्ध से लेकर तत्कालीन राजानों तक का छाब देने के बाद भविष्यत् के बारे में प्रश्न किया गया है।
इस प्रकार महारह पुराणों में से केवल सात में वंश और बंशानुचरित पाए जाते हैं। प्रत. शेष' पुराण भारत के राजनैतिक इतिहास की सष्टि से किसी उपयोग के नहीं हैं।
पुराण प्रति प्रशंसित और अत्युपेक्षित दोनों ही रहे ! अब तक प्रह समझा जाता था कि पुराणों की बाते विश्वसनीय नहीं हैं । किन्तु अब यह विश्वास बढ़ रहा है कि पुराणों में जितनी ऐतिहासिक बातें पाई जाती हैं, वे सब की सब ही अविश्वसनीय नहीं हैं। डा. विन्सेंट स्मिथ ने सन् १६०२ ई. में बह सिद्ध किया था कि मत्स्य হায্য ৪ আয় হালক্ষ্মী ৯ জিনা-লিলা হালকা ঋী তল नामों का जो क्रम दिया है वह बिल्कुल ठीक है । पुराणों मे जिन्न परम्परानुगत बातों का उल्लेख है, चाहे वह कितने ही विकृत रूप में क्यों न हो, वे ब्राह्मणों के प्राचीन काल तक की पुरानी हैं। उनका बड़ा महत्व इसी बात में है कि उनसे वेद-ब्राह्मण-सम्बन्धी ब्राह्मणों की रूढि के मुकाबिले पर क्षत्रियों की परम्परानुगत रूढ़ियों का ( Tradition) पता लगता है। क्षत्रिय-रूदि इस लिए
१. वे ये हैं --अग्नि, कर्म, पद्म, मार्कण्डेय, ब्रह्मवैवर्त, ब्रह्म, वामन, वराह, स्कन्द, शिव और लिङ्ग । १८ पुराणो मे सब मिलाकर चार लाख से अधिक श्लोक हैं, उनमें से किसी एक मे सात सहस्र हैं तो दूसरे में इक्यासी सहस्र श्लोक हैं ! विष्णुपुराण में, जिसे सब से अधिक सुरक्षित समझा जाता है, सात सहस्र से भी कम श्लोक हैं।
२ ब्राह्मणो की उक्त रूदि के पक्ष की त्रुटियाँ ये हैं---
(क) इस में केवल धार्मिक बातो का समावेश है, ऐतिहासिक प्रयोजन इससे सिद्ध नहीं हो सकता।