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संस्कृत-साहित्य का इतिहास
(घ) कार्तिकेय के कौश पर्वत पर श्रारोच करने के पराक्रमों का वर्णन बहुधा श्राया है।
(ङ) दो प्रतिपक्षियों में से अधिक बजशाली की उपमा सिंह से और दूसरे की हाथी से बार बार दी गई है ।
(च) शत्रु के क्रोध की उपमा के लिए प्रायः दूर देश तक फैली हुई अग्नि को चुना गया है ।
(इ) उच्चध्वनी का सादृश्य प्रलयकालीन समुद्र गर्जन से दिखलाया गया है । उदाहरणार्थ:--
शङ्खध्वनिः प्रज्ञयसागरघोषतुल्यः ।
( कर्णभार ) यस्य स्वनं प्रलयसागर घोषतुल्यम् ।
( दूतवाक्य ) (६) इन नाटकों में कुछ विचारों की आवृत्ति पाई जाती है । उदाहरणार्थ :(क)
शपामि सत्येन भयं न जाने ।
( मध्यम व्यायोग ) किमेतद्भो ! भयं नाम भवतोऽद्य मया श्रुतम् । ( बाब चरित ) (ख) 'अथवा सर्वमङ्कारो भवति सुरूपाणाम्" अनेक नाटकों में श्राया है ।
(ग) 'वीर का बाहु ही सच्चा शस्त्र है', यह विचार कई नाटकों में प्रकट किया गया है। ऐसे ही और भी बहुत से उदाहरण दिये जा सकते हैं ।
(७) इन नाटकों में प्रयुक्त शब्द भण्डार ( Vocabulary ) सथा मनोभावप्रकाशन प्रकार ( Expression ) प्राय: एक जैसे पाए
१ मिलाइये, कालिदासकृत शकुन्तला ( ११८ ), किमिव हि मथुराणां मण्डनं नाकृतीनाम् ।
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