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संस्कृत साहित्य का इतिहास (१४) तब इनका रचयिता कौन है ? श्री वर्ष (६०६-६४८) के दरबारी कवि बाराम ने श्रपर हर्षचरित के उपोद्घात् ' के एक पद्य में सास के नाटकों का छल्लेख किय है। वह पद्य यह है!--
सूत्रधार कृतारम्भैनाटकैबहुभूमिकः ।
सपसार्यशोलेभे भासोदेवकुलैरिव ३३ भास के नाटकों के सूत्रधार कृतारमः, बहुभूमिकै; और सपताक४ ये तीनों विशेषण इन नाटकों के सम्बन्ध में ठीक हैं।
राज शेखर (हवीं शताब्दी) ने 'मासनाटक चक्र' का उल्लेख मिया है और कहा है कि स्वमवासवदत्त अग्निपरीक्षा ५ में पूरा उत्तरा था। देखिये,
स्वसवासवदत्तस्य दाहकोऽभूत्र पावकः इन युक्तियों से सिद्ध होता है कि इन नाटकों का रचयिता भास था। किन्तु इस अनुमान के विरोधी विद्वान् राजशेखर के निम्नलिखित श्लोक को प्रस्तुत करते हैं:
कारणं तु कवित्वस्य न सम्पनकुलीनता। भावकोऽपि हि यद्धासः कवीनामनिमोऽभवत् ।।
आदौ भासेन रचिता नाटिका प्रियदर्शिका। तस्य रत्नावली नूनं रत्नमालेव शजते ।।
भागानन्दं समालोक्य यस्य श्रीहर्ष विक्रमः॥ १. यह उपोदयात ऐतिहासिक तथा काल-निर्धारिणी दृष्टि से बड़ा उपयोगी है। इसमें नामोल्लेख किए हुए ग्रन्थों के गुण जानने के लिये भी यह बड़े काम का है । २ सूत्रधार से प्रारम्भ होने वाले । ३ बहुत से पात्रों वाले । कालिदास के शकुन्तला नाटक में २३ और विक्रमोर्वशीय में १८ पात्र हैं। किन्तु इन नाटको में से प्रत्येक मे औसतन लगभग ३० पात्र हैं। ४ मिन्न-भिन्न नाटको में भिन्न-भिन्न कथानक से युक्त । कालिदास के नाटको का विषय प्रायः एक ही है। १ कठिन अालोचना।