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काल
चतुर्थ शताब्दी का माना है। इस युक्ति में यह अनुमान कर लिया गया है कि अर्थशास्त्र ई० पू० चौथी शताब्दी में लिखा गया था, किन्तु अाज हमें इतिहास का जो ज्ञान पास है, उसके अनुसार हम उक्त विचार कोनिश्चय के साथ ठीक नहीं कह सकते । ५० रामावतार ने भास को ईसा की दशवीं शताब्दी में रखा है। उनका विचार है कि माल का चारुदत्त नाटक शूद्रक के मृच्छकटिक का भद्दा संक्षेप है। ये नाटक
२. नन्छकटिक और चारुदत्त मे इतना घनिष्ठ सम्बन्ध हैं कि दोनो का स्वतन्त्र उद्भव असंभव प्रतीत होता है। उन्हें देखकर अनुमान करना पड़ता है कि या तो उनमें से कोई एक दूसरे के आधार पर लिखा गया है या दोनो किसी तीसरे ग्रन्थ पर अवलम्बित हैं। पहले पक्ष में भी दो मत हैं -- या तो चारुदत्त (जो सर्वसम्मति से चारो अंको में एक अपूर्ण नाठक हे ) अभिनय के प्रयोजन से मृच्छकटिक का संक्षेप है, या मृच्छकटिक चारुदत्त का अमपूर्ण समुपबृहित रूप है। इन दोनो विचारों में से भी प्रथम विचार के समर्थन में निम्नलिखित युक्तियाँ दी जाती हैं:
(क) वामन और अभिनवगुप्त जैसे प्रारम्भिक आलंकारिक चारुदत्त की अपेक्षा मृच्छकटिक से अधिक परिचित थे। वामन का पाठ 'द्य तं हि नाम पुरुषस्यासिहासनं राज्यम् मृच्छकटिक में श्राता है। श्लेष के प्रसंग में वामन लिखता है कि यह शूद्रक तथा अन्य लेखको के ग्रन्थों मे बहुत पाया जाता है।
(ख) 'असत्पुरुषसेवेव' की उपमा प्रसङ्गानुसार मृच्छकटिक में बहुत अधिक ठीक बैठती है, चारुदत्त में यह केवल एक श्रालंकारिक तुच्छ पदार्थ प्रतीत होता है।
(ग) श्राभ्यन्तरिक साक्ष्य से ज्ञात होता है कि चारुदत्त अविस्वष्ट है और सारी अवस्था तभी विस्पष्ट होती है जब हम मृच्छकटिक को हाथ में उठाते हैं।'