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संस्कृत साहित्य का इतिहास
की व्याख्या में भात कदाचित उनसे भी बढ जाता है। उसके नाटकों के विषय विविध हैं, तथा उनका कथानक सदा रोचक एवं सरब है । वह केवल ललित भाषा लिखने में ही उच्च कोटि का सिद्धहस्त नहीं है, श्रपितु नाटकीय घटनानुरूप यथार्थ परिस्थति पैदा कर देने में भी । Best शैली की एक और विशेषता यह है कि वह एक खोक के कई gee कर लेता है और प्रत्येक टुकड़े का वक्ता पृथक् पृथक् पात्र होता है। यह रीति मनोविनोदक उत्तर प्रत्युत्तर के तथा ओजस्वी वार्त्तालाप के बहुत अनुरूप है' | गद्य-पद्य दोनों मे कवि अपने आपको काव्य-पद्धति का श्राचार्य सिद्ध करता है । श्रालङ्कारिकों के मतानुसार भाव वैदर्भी रीति का कवि है ।
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भा की कविता में रोक छन्द का प्राधान्य है। यह बात बहुत कुछ प्राचीनता को बोधक है। भास की शैली की एक और विशेषता यह है कि वह पाणिनि के नियमों का उल्लङ्घन कर जाता है (जैसा पहले कहा जा चुका है।) यह बात भी उसके प्राक्काखीन होने की
सूचक
है
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(१७) काल'
भिन्न-भिन्न विद्वानों ने भास के लिए भिन्न-भिन्न काल निश्चित किए हैं। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में प्रतिज्ञायौगन्धरायण में से श्लोक ३ आया है । इसी के आधार पर पं० गणपति शास्त्री ने भारत को ई० पू०
१. इसी अभिरुचि के लिये विशाखदत्त का मुद्राराक्षस देखिये | २. दण्डी के अनुसार वैदर्भीरीति में निम्नलिखित दस गुण पाए जाते हैं; श्लेषः प्रसादः समता माधुर्य सुकुमारता ! अर्थ-व्यक्तिरुदारत्वंमोजः कान्तिसमाधयः ॥
( काव्यादर्श १, ४१ ) [ दण्डी इस बारे में भरत का अनुयायी है । ] ३. नवं शरावं सलिलस्य पूर्णं सुसस्कृतं दर्भकृतोत्तरीयम् । तत्तस्य मा भून्नरकं च गच्छेद, यो भतृ पिण्डस्य कृते न युध्येत ॥