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क्या इन नाटको का रचयिता एक ही व्यक्ति है ? ક્
जाते हैं | उदाहरणार्थ are a far after शब्द का प्रयोग और द्वितीय के लिए 'अहो करूणा खु इस्सरा' देखिये |
(८) इन नाटकों में हम कुछ नाटकीय रचना-नियमों तथा नाटकीय परिस्थितियों की पुनरावृत्ति पाते हैं । उदाहरणार्थ; स्वप्नवासवदत्त के लुटे अक की अभिषेक के तीसरे से तुलना करो । ( 8 ) प्राय: छः नाटकों में एक कहकर पानी माँगता है।
मरता हुआ आदमी 'श्रापस्तावत्'
(१०) इन नाटकों से मृत्यु समय के करुणा दृश्य प्रायः समान हैं । ( 19 ) इन सब की एक भारी विशेषता यह है कि सभी में भूमिका छोटी-छोटी हैं।
( १२ ) इन नाटकों में गौ पात्रों तक के नामों की श्रावृत्ति पाई जाती है। उदाहरणार्थ; विजया, हारपालिका और बादरायण, कचुकी हैं, तथा गोपालों के नाम वृषभदत्त एवं कुम्भदस हैं
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(१३) एक और भेदक विशेषता यह है कि माता के नाम का व्यवहार बहुधा किया गया है। जैसे, । जैसे, यादवीमातः, शौरसेनीमातः, सुमित्रामातः ।
(५४) पाणिनी व्याकरण के नियमों से हटकर चलने की बाध साधारण है । यथा,
श्रपृच्छ् का प्रयोग परस्मैपद में किया गया है और राज शब्द समास में आया है ( देखिये, काशिराज्ञ, सर्वराज्ञः इत्यादि ) ।
(१२) 'इमामपि महीं कृत्स्नां राजसिंहः प्रशास्तु नः' यह भरत---- वाक्य इन कई नाटकों में आया है ।
इन कतिपय हेतुओं से एवं विरोधी युक्तियों के अभाव में यह अनुमान करना स्वाभाविक है कि इन सब नाटकों का कर्ता एक ही व्यक्ति है । जो इन्हें भास की रचना नहीं मानते, यह तो उन्हें भी मानना पड़ेमा ही कि ये सब किसी एक ही की रचना 觱 1