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क्या इन नाटकों का रचयिता एक ही व्यक्ति है ?
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( ४ ) ये नाटक अनेक प्रकार से अन्योन्य सम्बन्ध रखते हैं (क) स्वश्वासवदत्त, प्रतिज्ञा यौगन्धरायण का ऐसा ही उत्तरखण्ड है जैसा कि भवभूति का उत्तररामचरित उसके महावीरचरित का है दोनों में पात्र भी वही हैं। दोनों की शैली, (वचन- विम्यास, और चरित्र-चित्रण ) भी बहुत करके एक जैसी हैं इतना ही नहीं, स्वप्नवासवदत्त में प्रतिज्ञा यौगन्धरायण के कुछ उद्देश भी हैं
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(ख) अविमारक ( १ म अ क ) में राजा अपनी कन्या के लिए योग्य वर चुनने की चिन्ता में ग्रस्त है, प्रतिज्ञायौगन्धरायण में भी महासेन अपनी पुत्री वासवदत्ता के लिए योग्य - कुत्रीम एवं वीर-वर के सुनने की चिन्ता कर रहा है । इन दोनों दृश्यों में बड़ी समानता पाई जाती है ।
(ग) बालचरित में तीसरे अंक का १ म दृश्य ( गोपाल-दृश्य ) प्राय. वैसा ही है जैसा पञ्चरात्र में २ य अंक का १ स दृश्य ।
(घ) कुछ वाक्य अभिषेक और स्वप्नवासवदत्त दोनों में ज्यों के त्यों आए हैं। ( यथा; किं वच्यतीति हृदयं परिशङ्कितं मे ) इसी प्रकार कुछ वाक्य बालचरित और चारुदत्त में भी एक जैसे हैं । अभिषेक में वाली के अन्तिम शब्द वही हैं जो ऊरुभङ्ग में दुर्योधन के हैं ।
(५) इन नाटकों में एक जैसी कविकल्पनाएँ ( काव्यालंकृतियाँ ) पाई जाती हैं । यथा;
(क) अविमारक, चारुदत्त और दूतवाक्य में बादलों में इयभर में चमक कर छिपाने वाली बिजली की उपमा मिलती है ।
(ख) प्रतिमा, बालचरित, दूतवाक्य, मध्यमन्यायोग और प्रतिक्षा यौगन्धरायण में राहु के मुख में पड़े चन्द्रमा की उपमा दी गई है।
(ग) बालचरित, दूतवाक्य, श्रभिषेक और प्रतिज्ञा यौगन्धरायण में शक्तिशाली पुरुष ( यथा श्रीकृष्ण ) की तुलना मन्दर पर्यंत से की गई है।