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संस्कृत-साहित्य का इतिहास
सब से प्राचीन (असको) पुरावा क रचना के समय के विषय म अधोलिखित बातें ध्यान में रखने योग्य हैं:---
() बाण ( ६२० ई.) अपने इर्ष-वरित में वायु पुराण का उल्लेख करता है।
(२) ४७६ ई. तथा इसके आसपास के भूदान-पन्नों में, महाभारत के बताए जाते हुए ब्याल के कुछ श्लोक उद्धत है, किन्तु वस्तुतः वे श्लोक पद्म और भविष्यत् पुराण में पाये जाते है।
(३) मत्स्य, वायु, और ब्रह्माण्ड कहते हैं कि उन्होंने अपने वर्णन भ वष्यत् से लिए हैं और उनके श्राभ्यन्तरिक साचा से सिद्ध होता है कि भविष्यत् पुराण ईसा की तृतीय शताब्दी के मध्य में विद्यमान था। मत्स्य ने मविरत से जो कुछ भी लिया वह उक्त शताब्दी के अन्त मे पहले ही लिया और वायु तथा ब्रह्माएक ने चतुर्थं शताब्दी में लिया।
(४) आपस्तम्ब सूत्र (ई० पू० ३य शताब्दी से अर्वाचीन नहीं, किन्तु सम्भवतया दो शताब्दी और पुराना ) 'भविष्यत् पुगण को प्रमाण रूप से उद्धत करता है। 'भविष्यत् पुराण में भविष्यत् (आगामी) भार पुराण (गत) दोनों शब्द परस्पर विरोधी हैं, इससे प्रकट होता है कि नाम 'पुराण' केवल जातिवाचक के रूप में ही प्रयोग में श्राने लगा था। ऐसा प्रयोग प्रचलित होने में कम-से-कम दो सौ वर्ष अवश्य लगे होंगे, अतः पुराण कम से कम ५ वीं शताब्दी ई. पू. के प्रारम्भिक काल में या शायद और भी दो शताब्दी पूर्व, अवश्य विद्यमान रहे होंगे।
[( श्रापस्तम्ब में उल्लिख ) भविष्यत् नाम और ई०प्रय शताब्दी के भविष्य नाम का अन्तर स्मरण रखने योग्य है। हमें अाजकल विकृत रूप में भविष्य पुराण ही प्राप्त है।]
(१) कौटिल्य ने अनेक स्थानों पर अपने अर्थ शास्त्र में पुराणों को उत्कृष्ट प्रमाण रूप से उद्धत किया है।
(६) शालायन और सूत्र और प्राश्वलायन सूत्र पुराणों का उल्लेख करते हैं।