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के आस-पास भारत से जाते हुए भारतीय देवताओं को भी अपने साथ लेते गए। ऋग्वेद के एक मन (१०, ७५ ) में भारतीय नदियों के नाम मिलते हैं। उन नामों का क्रम इस पश्चिम-गमन के सिद्धान्तानुसार ठीक बैठना है। पूर्व-गमन का वाद अपेक्षाकृत पुराना है, इसके सिवा इस बाद का पोपक और कोई प्रबल तर्क नहीं है । जब तक विरोध में पर्याप्त युक्तियाँ न हो तब तक भारतीय रूदि को मिथ्या नहीं ठहराया जा सकता। भारतीय रुढि को मिथ्या व्हराने के लिए यह बताना होगा कि क्यों, कैसे और किस उद्देश्य की सिद्धि के लिए यह बड़ी गई थी।]
(ङ) काल-विद्वान् पुराणों का समय उनमें उपलब्ध होने वाली ना से नई सूचनाओं के अनुसार निश्चित करते हैं। लेकिन वे इस बात की प्रायः उपेक्षा कर जाते हैं कि किसी मकान या माहित्यिक रचना का काल उसमें होने वाली नवीनतम वृद्धि के अनुसार निश्चित नही हो सकता।२ दिमन में नवीनतम वृद्धियों के ही आधार पर ब्रह्मपुरण को, जिसे आदि पुराण भी कहते हैं, जिसमें पुरानी सामग्री प्रचुरता में पाई जाती है, १३ वीं या १४ वो शाब्दीका बतलाया है। १८ पुराणों ने अपने पृथक-पृथक नाम कमाल किए, यह निश्चय नहीं है। यह सब कुछ होने पर भी, उन्हें प्राहाण् अन्धों के प्राचीन काल तक अच्छी तरह पहुचाया जा सकता है। यह विश्वास नहीं हो सकता कि पुराणों का पान निर्माण वेदों और ब्राह्ममणों से थोड़ी-थोड़ी बाते लेकर उस समय हुश्रा होगा जिस समय किसी ने वेदों और ब्राह्मणों को ऐतिहासिक ग्रन्थ मानने का स्वप्न भी नहीं देखा होगा ।
१. इम मे गंगे यमुने सरस्वति शुद्रि स्तोम सचता पराया सिकन्या मरुवृधे वितस्तया/कीये शृणुह्यासुपोमया ।।
२. 'कैम्ब्रिज हिस्टरी ऑव् इण्डिया' के अन्तर्गत ई० जे० राप्सन लिखित पुराणों पर निबन्ध देखिए ।