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पुराण
महत्त्वपूर्ण है कि उससे हम क्षत्रिय-दृष्टिकोण से, प्राचीन भारत के तथा उसकी प्राचीन राजनीतिक दशा की मलक के दर्शन प्राप्त कर सकते हैं ।
प्राचीन राजवंश वर्णन पुराणों में दिए राजवंश वर्णन में प्रत्येक राजा का वर्णन देने का प्रयत्न नहीं किया गया, उनमें केवल यशस्वीराजाओं का वर्णन है । ऐसा प्रतीत होता है कि ये वर्णन ब्राह्मणों की ( जिन्हें सांसारिक विषयों में कोई रुचि नहीं थी ) मौखिक रूढ़ि के द्वारा सुरक्षित नहीं रहे, किन्तु ये सुरक्षित रहे हैं राजाओं के भार कवियों के द्वारा | यदि ब्राह्मण लोग अपने ग्रन्थो को अक्षर प्रत्यक्षर ठीक-ठीक याद रख सकते थे; तो हमें यह विश्वास करने में कोई कठिनता न होनी चाहिए कि पुराण रक्षक भाटो ने भी पुराणों के राजवंश वनों को ठीक-ठीक याद रक्खा | प्राचीन वंशावली का याद रखना भारत में गौरव की वस्तु खयाल की जाती रही है; अतः बहुत अधिक लोकप्रिय होने के कारण इन वशाचलियों में अधिक बढ़ती की (ख) इस रूटि के जन्मदाता ब्राह्मणो में ऐतिहासिक बुद्धि का अभाव था; और
(ग) वे एकान्त कुटियो में रहने के कारण सासारिक ज्ञान को ताला लगाए हुए थे ।
उदाहरणार्थ, ब्राह्मण-रूढ़ि के अनुसार शुनःशेष की जो कथा है । Farrant नगर को गॉव बताया गया है।
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१. भारत पर श्रार्यों की विजय में क्षत्रियों का बहुत बड़ा हाथ हैं यदि हम जानना चाहें कि उनका स्थान क्या था, और उन्हों ने कौन कौन से बड़े काम किये, तो हमें उनकी रूढ़ियों का अध्ययन करना चाहिये । केवल पुराणो में दिए हुए वर्णन से ही हम यह जान सकते हैं कि किस प्रकार ऐल वंश का उन सारे देशों पर प्रभुत्व था जिन्हें हम आर्यों के अधिकार में आए हुए कहते हैं । ब्राह्मण साहित्य से हमें इस महान् रूप-परिवर्तन का कुछ पता नहीं लगता ।