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क्या संस्कृत बोलचाल की भाषा थी ?
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पिछली तालिका में दी हुई भाषाएँ, जिन्होंने १००० ई० के आसपास से विकसित होना शुरू किया, अब वैभक्ति अर्थात् विभक्तियों के आधार पर पृथक्-पृथक् अर्थ प्रकट करने वाली ( Inflexional ) भाषाएँ नहीं रहीं। ये अब अंग्रेजी के समान वैश्लेषरिक अर्थात् विभसियों के स्थान पर शब्द का प्रयोग करके पृथक्-पृथक् अर्थ को प्रकट करने वाली भाषाएँ बन गई हैं । महाशय बीज का कथन है--- 'संश्लेषण का कुसुम कुड्मल रूप से प्रकट हुआ और फिर स्फुटित हो गया और जब पूरा स्फुटित हो चुका, तब श्रम्य कुसुमों के समान मुरझाने लगा । इसकी पंखुड़ियाँ अर्थात् प्रत्यय या विभक्तियों एक-एक करके झड़ गई और यथासमय इसके नीचे से वैश्लेषणिक रचना का फल ऊपर थाकर बढ़ा और पकगया ।'
आर्य भाषाओं की श्रेष्ठता का प्रमाण इस बात से मिलता க जब कोई श्रार्य-भाषा और कोई भारत की अनार्य भाषा श्रपस में मिलती हैं, तब अनार्य भाषा श्रभिभूत हो जाती है । श्राज-कल हम देख सकते हैं कि उन प्रांतों में, जहाँ दो जातियों के देशों की सीमाएँ मिलती हैं, भाषा के स्वरूप का यह परिवर्तन जारी है, जिसकी उन्नति की सब मंजिलें हम साफ़-साफ़ देख सकते हैं ।
द्राविड़ शाखा की अनार्य भाषा - तैलगु, कनारी, मलयालम और तामिल ये दक्षिणी भारत में ही प्रचलित हैं । भारतीय भाषाओं के समग्र इतिहास में एक भी उदाहरण ऐसा नहीं मिलता, जिससे किसी श्रनार्य भाषा द्वारा श्रार्य भाषा का स्थान छीन लेने की बात पाई जाये ।
५ क्या संस्कृत बोलचाल की भाषा थी ?
'संस्कृत कहाँ तक बोलचाल की भाषा थी ?' इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रोफेसर ई० जे० राप्सन कहते हैं- "संस्कृत भी वैसी ही बोलचाल की भाषा थी, जैसी साहित्यिक अंग्रेजी है, जिसे कि हम बोलते हैं । संस्कृत उत्तर-पश्चिमी भारत की बोलचाल की भाषा थी,