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महामारत
कर सकते हैं कि "हमारा यह मानना ठीक है कि यह यहान् ऐतिहासिक महाकाव्य (महाभारत) हमारे संवत्सर (सन् ईसवी) के प्रारम्भ से पहले ही एक औपदेशिक संग्रह-अन्य बन चुका था।
[हाँ, कुछ भाग ईसा की दूसरी शताब्दी के प्रहिह भी हो सकते है। क्योंकि (क) हरिवंश में रोमन शब्द 'दीनार' पाता है और महाभारत के आदिपर्व के प्रथम भाग में तथा अन्तिम पर्व में हरिवंश का पता मिलता है। अत: ऐसे भाग, जिनमें हरिवंश का पता मिलता है, दोनार सिक्के के प्रचार के बाद की मिलावट होने चाहिएँ । (ख) राशियों का वर्णन भी यही सूचित करता है। ग) यूनानियों, सिथियनों और बैक्टीरियनों के बारे में भविष्यवाणियाँ की गई हैं।]
श्रा--असली महाभारत के रचना-काल के विषय में निम्नविखित बात ध्यान देने के योग्य है:--
(1) दमन का एक साक्ष्य मिलता है कि पाणिनि को असली महाभारत का पता था।
(२) श्राश्वालयन गृह्यसूत्र (ई.पू. ५वीं शताब्दी) में एक 'भारत' और 'महाभारत' का नाम आता है।
१ चि० वि० वैद्य के मत से महाभारत ने वर्तमान रूप ईसा से पूर्व ३०० और १०० के बीच प्राप्त किया। ३०० ई. पूर्व को परली सीमा मानने के हेतु ये हैं:- (क) यवनों का उल्लेख बार बार आता है। (ख) आदिपर्व में नग्न क्षपणाक का उल्लेख होना । (ग) महाभारतोक्त समाज की, धर्म की और विद्या की अवस्थाएँ मेगस्थनीज़ की वर्णित अवस्थाओं से मेल खाती हैं । उदाहरणार्थ, मांस-भक्षण की प्रवृत्ति घट रही थी, शिव और विष्णु की उपासना प्रारम्भ हो चुकी थी, व्याकरण, न्याय और वेदान्त बन चुके थे और उनका अध्ययन होने लगा था । .