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महाभारत
श्र-वह काल जिसमें महाभारत ने वर्तमान रूप धारण किया। इस प्रकरण में निम्नलिखित बातें धान में रखने योग्य है:--
(1) ईसा को वो शताब्दी में क्षेमेन्द्र ने भारतमंजरी लिखी। इसमें महाभारत का संक्षेप है । अाजकल महाभारत के जितने संक्षेप मिलते हैं, उनमें सबसे पुराना यही है। प्रो. बुदबर ने इस ग्रंथ की हस्तलिखित प्रतियों की महाभारत के साथ विस्तृत तुलना करके दिखाया है कि क्षेमेन्द्र का असली ग्रंथ आजकल के महाभारत से बहुत भिन्न नहीं है।
(२) शंकराचार्य (वीं शताब्दी का उत्तरा) ने कहा है कि उन (स्त्रियों और शूद्रों) के लिए जो वेदाध्ययन के अधिकारी नहीं है, महाभारत धर्मशिक्षा के लिए स्मृति के स्थान पर है।
(३) वेदों के महान् विद्वान् कुमारिल ने (वीं शताब्दी का भारंभ) अपने तंत्रवास्तिक में महाभारत के १८ पर्वो में से कम से कम दस पर्षों में से उद्धरण दिये हैं या उनकी ओर संकेत किया है। (उन दश पर्षों में १२वाँ, १३वों और १६का सम्मिलित है, जो तीनों के तीनों निस्संदेह बाद की मिलावट है।)
(४) ७वीं शताब्दी के बाय, सुबन्धु इत्यादि कवियों ने महाभारत के १८ वे पर्व में से ही कथाएँ नहीं की, वे हरिवंश से भी परिचित थे।
(१) भारत के दूरदेशीय कम्बोज नामक उपनिवेश के बगमा छटी शताब्दी के एक शिलालेख में उत्कीर्ण है कि वहाँ के एक मंदिर को रामायण और महाभारत की प्रतियाँ भेंट चढ़ाई गई थीं । इतना ही नहीं, दाता ने उनके निरंतर पाठ होते रहने का भी प्रबंध कर दिया था।
(६) महाभारत जावा और वाबी द्वीपों में छठी शताब्दी में मौजूद था। तिब्बत की भाषा में इसका अनुवाद छठी शताब्दी से # पहले हो चुका था।