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महाभारत
पाराव लोग जीवन से असताकर मेरु पर्वत पर चले गये और अपने पीछे अर्जुन के पोते परीक्षित पर प्रजा-पालन का भार रख गये। अन्तिम पत्र में पाएलवों के स्वर्गारोहण की कथा है।
हरिवंश में १६ हजार श्लोक है और सारा अन्य तीन भागों में विमत है । प्रथम भाग में श्रीकृष्ण के पूर्वजों का, दूसरे में श्रीकृष्ण के पराक्रमों का, और तीसरे ‘में कलियुग की श्रागामी बुराइयों का वर्णन है।
(ङ) उपाख्यान--रामायण की अपेक्षा महाभारत में उपाखभालों की संख्या बहुत अधिक है। कुछ उपाख्यान ऐसे भी हैं, जो दोनों महाकाव्यों में पाये जाते हैं । दनवास की दशा में एडवों को धैर्य । बंधाने के लिए वनपर्व में बहुत सी कथाएँ कही गई हैं। मुख्य मुख्य उपाख्यान ये है-(१) रामोपाख्यान अर्थात् राम की कहानी (२) नली. पाख्यान अर्थात् नल और दमयन्ती की कथा, जो भारत में बहुत ही सर्वप्रिय हो चुकी है। (३) सावित्री सत्यवान...यह उपाख्यान जिसमें भारतीय श्रादर्श-पत्नी का चित्र अङ्कित किया गया है, यह कहानी भी भारत में बहुत प्रेम से सुनी जाती है। (४) शकुन्तलोपाख्यान । यही उपाख्यान कालिदास के प्रसिद्ध शकुन्तला नाटक का आधार है । (१) गंगावतरण । यह ठीक वैसा ही है जैसा हामायण में है । (६) मत्स्योपाख्यान । इसमें एक प्राचीन जनाक्षाव कथा है (6) उशीनर' की कथा, शिवि की कथा, वृषदर्भ की कथा, इत्यादि।
(च) महाभारत ने वर्तमान रूप कैसे प्राप्त किया-- अब अगला प्रश्न यह है कि महाभारत ने वर्तमान विशाल श्राकार कैसे धारण किया ? ऊपर कहा जा चुका है कि असली कथांश सारे अन्य का पांचवां भाग है। शेष चार भाग श्रीपदेशिक सामग्री रखते है। यह
१ इन राजाश्रो ने बाज़ से कबूतर की जान बचाने के लिए अपनी जान दी थी।