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सरकुन्द-साहित्य का इतिहास समग्रम को देखते हुध परिष्कृत चन्हों की तथा सामाजिक वातावरण की दृष्टि से रामायण कहीं अधिक परिमार्जित, कहीं अधिक समरूप एवं कहीं अधिक समानावयवी है। इसका होने पर भी दोनों महाकाव्यों की शैली में एक शनि समानता है। होपक्षिम ने लगभग तीन सौ स्थल हूँ है, जो प्रायः एक जैसे है जिनमे एक-ले काश्य और एक से वाक्यखएव हैं। उदाहरणार्थ, शान्तिपूर्ण दृश्यों के दर्शनों में चोकर कतु महसि होनों महाकाव्यों में प्राय: पाया जाता है।
(२) दोनों में ही एक जैसी उपमाएं और युद्ध के एक जैसे वर्शन' पाये जाते हैं।
(६) कथा की लमानता और भी अधिक देखने के योग्य है। सोता और द्रौपदी दोनों नायिकाएं, यदि उन्हें नायिका कहना उचित हो, प्राश्चर्य-जनक रीति से पैदा हुई हैं। दोनों का विवाद स्वयंवर की रीति से तो हुआ था, किन्तु वर का सुनाव दोनों में से किसी की भी इच्छा से नहीं हुआ था। दोनों के स्वयंवरों में शारीरिक शक्ति ही सर्वोच्च मानी गई थी। दोनों काव्यों में मापक को वनवास होता है और दोनों काव्यों में नायिकाओं का (सीता और द्रौपदी का) अपहरण (क्रमशः रावण और जयद्रथ द्वारा) होता है। इस प्रकार हमें दोनों काव्यों में एक कथा का प्रभाव दूसरे पर पड़ता दिखाई देता है।
(४) पौराणिक कथाएं-दोनों महाकाव्यों की पौराणिक कथानों में (और हम कहेंगे कि दर्शन-सिद्धान्तों में भी) बहुत समानता है। दोनों में ऋग्वेदकालीन प्रकृति-पूजा लुत सी दिखाई देती है । वरुण, अश्विन और आदित्य जैसे देवताओं का पता नहीं मिलना । उपप जैसी १.मिलाकर देखिए,
सेना भिन्ना नीरिख सागरे, सेना मिना नरिवागाधे।