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संस्कृत-साहित्य का इतिहास
पर्थ में एक छोटा सभापर्व है ।
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इसके अतिरिक्त कुछ परिशिष्ट भाग भी है, जिसे खिलपर्व या हरिवंश कहते हैं । महाभारत में इसकी यही स्थिति है, जो रामायण में उत्तरकाण्ड की । महाभारत में दिये हुए समग्र श्लोकों की संख्या ११,३२६ र्थात् मोटे रूप में एक लाख है ।
प्रतिपादित वस्तु - घादिपर्व में कौरव पाण्डवों के शैशव, द्रौपदी के विवाह और circa का यदुनाथ कृष्ण के साथ परिचय वर्णित है । दूसरे पर्व में इन्द्रप्रस्थ में रहते हुए पात्रों की समृद्धि का तथा युधिष्ठिर द्वारा दुर्योधन के साथ जुए में होग्दी तक को मिलाकर सब कुछ दार जाने का वर्णन है । अन्त में पाण्डवों ने बारह साल का साधारण और एक साल का प्रज्ञात वनवास स्वीकार कर लिया । वनपर्व में पाण्डवों के बारह वर्ष तक काम क वन में रहने का विराट पर्व में उनके मत्स्यराज विशद् के घर अज्ञातवास के तेरहवें साल का वर्णन है !
क्योंकि कौरवों ने की पूर्ण माँगों का सहानुभूति-भरा कोई उत्तर नहीं दिया वहः उद्योग में पाण्डवों की युद्ध की तैयारी का वर्णन है । अगले पांच पत्रों' में उस सारी संग्राम का विस्तार से वयम है, जिसमें पाण्डवों और कृष्ण को छोड़कर सब मारे गये । ग्यारहवें पर्व में मरे हुथों के अग्नि-संस्कार का वर्णन है। अगले दो पर्वों में राजधर्म पर युधिष्ठिर को दिया गया भीष्म का लम्बा उपदेश है । चौदह पर्व में युधिष्ठिर के राजविक और श्वमेघ यज्ञ का वर्णन है । पन्द्रहवें में धृतराष्ट्र तथा वान्धारी का वन गमन वर्णन, सोलहवें में यादवों का परस्पर कम और व्याध के तोर से श्रीकृष्ण की अचानक मृत्यु वर्णित है। सत्र में दिखाया गया है कि किस प्रकार
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१ – इससे प्रतीत होता है कि क्रम प्रबन्ध के कर्ता कम-से-कम दो आदमी श्रवश्य है ।