________________
२२
सस्कृत साहित्य का इतिहास शास्त्र के नियमों का श्रमपूर्ण निर्माण किया गया है तथा लम्बे-जम्छे समासों का प्रयोग बहुत हो गया है। इस प्रकार के काल में संस्कृतकविता क्रमशः अधिकाधिक कृत्रिम होती चली गई है। इसना होने पर भी संस्कृत-कविता गुणों से खाली नहीं है। इस प्रकार एक प्रसिद्ध विद्वान्, जिपले मेरा परिचय है, कविना को अन्तरारा में इतना घुज गया है कि उसे किसी और वस्तु से अानन्द मिलता ही नहीं (मैकडानल) : संस्कृत कविता के वास्तविक लावण्य का अनुभव संस्कृत के ही ग्रन्धों के पढ़ने से हो सकता है, अनुवाद-ग्रन्थों से नहीं। संस्कृत छन्दों का चमत्कार किसी अन्य भाषा में अनुगद करने से नहीं श्रा सकता । सच तो यह है कि केवल मूजन संस्कृत ग्रन्थों का पढ़ना ही पर्याप्त नहीं है (अनुवाद की तो बात ही क्या) बल्कि संस्कृत के विद्यार्थी को भारत के प्राकृतिक श्यों का, भारतीयों की प्रकृतियों, प्रथाओं और विचार-धारात्रों का भी गहरा ज्ञान होना आवश्यक है।
इस पुस्तक में श्रेण्य संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त इतिहास दिया
आयगा।