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रामायण
उ.-.-भाषा के शाधार पर भी ऐच जैकोबी इसी परिवाम पर पहुचे है कि शामायण बौद्ध काल से पहले की है।
ऊ-या बौद्ध धर्म की बातें रामायण में सिद्ध की जा सकती है। इस प्रश्न को लेकर मो. विंटरनिटज कहते हैं-"शायद इस प्रश्न का उत्तर नहीं में है। क्योंकि रामायण में जिस एक स्थल पर बुद्ध का माम पाया है, वह अवश्य बाद की मिलावट वै" ।
(३) यूनानियों के सम्बन्ध से-सारी रामायण में केवल दो पधों में सूचनों (यूनानियों) का आम पाया जाता है। इन्हीं के श्राधार पर प्रो० देबर ने यह सिद्ध करने का यत्न किया है कि रामायण की कथा पर यूनानियों का प्रभाव पड़ा है। किन्तु प्रो. जैकोबी ने इस निश्चय में सन्देह की कोई गुंजायश नहीं छोड़ी कि ये दोनों पछ ३०० ई० के बाद कभी मिजाय भर हैं।
(४) बाभ्यन्तरिक साक्ष्य ----- असली रामायण में कोसल की राजधानी अयोध्या कही गई है । बाइ में बौद्धों ने, जैमें ने, यूनानियों ने, यहाँ तक कि पतंजली ने भी अयोध्या नगरी को साकेत के नाम से दिया है। लय की साजधानी, जैसा कि ललम काण्ड में दी
के बारे में इतने कपण थे कि उन द्वारा बौद्ध ग्रन्थों से कुछ लेने की सम्भा बना नहीं है। इसके अतिरिक्त, रामायण में उच्चतम सदाचार की शिक्षा है, जिसे वाल्मीकि ने किसी अप्रसिद्ध बौध्दगन्थ से नहीं लिया होगा। हाँ, इसके विपरीत बौद्धो द्वारा बाह्मणो के ग्रन्थों से बहुत कुछ लेने के अनेक उदाहरण मिलते हैं।
१ यदि वाल्मीकि बुध्द के बाद हुआ होता तो वह इस प्रकार के सर्वप्रिय ऐतिहासिक महाकाव्य को प्राकृत में लिखता। २ इस नगर की नींव डालने वाला नप कालाशोक था जिसकी अध्यक्षता में लगभग ३०० ई० पू० वैशाली में बौध्दो की दूसरी सभा हुई थी। मेगस्थनीज़ ( ३.. ई० पू० ) से पहले ही यह भारत की राजधानी बन चुका था।