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महाभारत
इस ग्रन्थ का नाम महाभारत रक्खा था' |
मूलावस्था में महाभारत को 'इतिहास, पुराया या श्राख्यान' की श्रेणी में सम्मिलित किया जाता था । आजकल यह श्राचारविषयक उपदेशों का विश्वकोष है । यह मनुष्य को 'धर्म, अर्थ, काम और मोच' इन चारों पदार्थों की प्राप्ति कराता है। इसे पंचम वेद भी कहा जाता है । इसे कृष्ण-वेद ( कृष्ण का वेद ) भी कहते हैं । प्रन्थ भर में arma feat की सबसे अधिक प्रधानता होने के कारण इसे ' की स्मृति' भी कहते हैं। सच तो यह है कि वर्तमान महाभारत में पदेशिक अंश ऐतिहासिक वंश की अपेक्षा कम से कम चार गुना है।
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(ख) महत्व - यद्यपि महाभारत रामायण के समान सर्वप्रिय नहीं sa इसका मह रामायण से किसी प्रकार कम नहीं है। इसका ऐतिहासिक अंश महायुद्ध तथा कौरवों और पाण्डवों के विस्तृत इतिवृत्त का वर्णन करता है। इसके द्वारा हमें सरकालीन सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों का भी पता लगता है। इससे भार्यों की तत्कालीन सभ्यता पर भी प्रकाश पड़ता है । इसका महत्व इस कारण से भी है कि यह हमें केवल शान्ति-विद्या की ही नहीं, रा-विद्या की भी बहुत सी बातें
१ मिलाइए,
महत्वाद् भारतत्वाच्च महाभारतमुच्यते ।
पाणिनि को युधिष्ठिर जैसे वीरों का तो पता है किन्तु महाभारत नामक किसी अन्य का नहीं । इससे भी अनुमान होता है कि महाभारत नाम की उत्पत्ति बाद में हुई । २ इन शब्दों को भारतीय प्रायः पर्यायवाची के तौर पर प्रयुक्त करते हैं ।
३ वेदो के समान प्रमाण्य-पूर्ण यह क्षत्रियों को उनके सांग्रामिक जीवन के विषय में शिक्षायें देता है । ४ यह क्षत्रियों को कृष्णोपासना का उपदेश करता है, जिससे उन्हें अवश्य सफलता और कल्याण मिलेगा । (सिलवेन लेवी )