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संस्कृत-साहित्य का इतिहास
वदनाओं के समारोह से प्रतीत होता है। असली ग्रन्थ में भी लम्बे ज वर्णन थे। जैसा कि मैकडानल ने कहा है कि असल महाभारत कदा चित् ८८००१ श्लोकों तक ही परिमित नहीं था ।
महाभारत के विकास में तीन विशिष्ट कार देखे जाते हैं । श्रादि में एक रक्षोक है
मन्वादि भारत केचिदस्तिकादि तथापरे । तथा परिचराद्यन्ये विप्राः सम्यगधीयते ॥ ( कुछ विद्वान् भारत का प्रारम्भ मनु-उपाख्यान से, उपाख्यान से और कुछ परिचर उपाख्यान से मानते हैं । )
कुछ अस्तिक
तीनों कालों में से प्रथमकाल में व्यास ने अपने पांच प्रधान शिष्यों में से एक शिष्य वैशम्पायन को महाभारत पढ़ाया । यह असली ग्रन्थ कदाचित् परिचर उपाख्यान से प्रारम्भ होने वाला मन्थ
दूसरे काल में यह ग्रन्थ वैशम्पापन ने सर्प-सत्र में जन्मेजय को सुनाया। इस काल के ग्रन्थ में कदाचित् २४००० श्लोक थे । यह प्रन्थ अस्तिक उपाख्यान से प्रारम्भ होता है ।
arer काल में द्वितीयकालीन विस्तृत ग्रन्थ सौति ने शौनक को सुनाया, जब शौनक द्वादशवर्षीय यज्ञ कर रहे थे, जब कि शौनक ने कुछ प्रश्न किये, और सौति ने उनका उत्तर दिया । आजकल के एक लाख श्लोकों की संख्या इस तीसरे काल में ही प्रायः पूर्ण हुई होगी ।
मिलाइए
श्रस्मिंस्तु मानुषे लोके वैशम्पायन उक्तवान् । एवं शतसहख तु मयोक्तं वै निबोधत ॥ यह ग्रन्थ मनु-उपाख्यान से प्रारम्भ होता है। कदाचित् सौति ने
१ कदाचित् यह संख्या श्लोका की नहीं, कूट श्लोको की है, जो भारत में श्राये हैं ।