________________
महाभारत
३.६
अरुबई वाले संस्कारया की भाषा, ऐतिहासिक महाकाव्यों की ओर ध्यान न देने वाले वैयाकरण पाणिनि की भाषा से बाद की भाषा के रूप की अवस्था को प्रकट करती है। किन्तु इससे रामायण का कोई पाणिनि के बाद का समय सिद्ध नहीं होता है। पाणिनि ने केवल शिष्टों की परिष्कृत भाषा को ही अपने विचार का क्षेत्र रक्खा था और सर्वप्रिय भाषा की ओर ध्यान नहीं दिया था। दूसरी ओर, यदि रामायण पाणिनि के बाद बनी होती तो यह पाणिनि के व्याकरण के प्रबल प्रभाव से नहीं बच सकती थी।
(च) शैली जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, संस्कृत के सभी लेखकों ने नामायण को आदिकाव्य और इसके रचयिता को आदि कवि कहा है। ऐमा होने से यह विस्पष्ट है कि रामायण संस्कृत काव्य की प्रारम्भिक अवस्था को हमारे सामने रखती है। लोक छन्द की उत्पत्ति की कथा, जिसका उल्लेख ऊपर हो चुका है, सूचित करती है कि इस छन्द का प्रादुर्भाव वाल्मीकि से दुआ ! रामायण की भाषा आदि से अन्त तक प्राजल और परिष्कृत है। अलङ्कारों की छटा बार बार देखने को मिलती है । उपमा और रूप के प्रयोग में वाल्मीकि अत्यन्त निपुण हैं । भाषा की सरजता और भाव की विशदता उनकी कविता शैली की विशेषता है।
(8) महाभारत (क) वर्तमान महाभारत प्रहाल महाभारत का समुपबृहित रूप है। असल महाभारत वस्तुतः एक ऐतिहासिक अन्य था, म कि प्रौपदेशिक । सम्भवतः व्यास ने इसे 'जय'' का नाम दिया । जैसा कि वर्शित
१ मिलाकर देखिए, १८बै पर्व का वाक्य 'जयो नामेतिहासोऽयम्। इसके अतिरिक्त महाभारत का प्रत्येक पर्व वक्ष्यमाण आशीर्वाद से प्रारम्भ होता है
नारायणं नमस्कृत्य नरञ्चैव नरोत्तमम् । • देवी सरस्वतीञ्चैव ततो जयमुदीरयेत् ॥