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हिन्दी साहित्य का इतिहास
बाद के वैदिक साहित्य में अर्थात् ब्राह्मणों में इतिहास, माख्यान और पुराणों' का उल्लेख मिलता है। इस बात के प्रचुर प्रमाण मिलते हैं कि यज्ञों, संस्कारों तथा उत्सवों के अवसर पर इनको कथा आवश्यक थी । यद्यपि इसका तो प्रमाण नहीं मिलता कि तब इतिहास-पुराणकाव्य ग्रन्थ रूप में विद्यमान थे, तो भी इससे इनकार नहीं हो सकता कि ऐतिहासिक एवं पौराणिक नाम से प्रसिद्ध कथावाचक लोग बहुत पुराने समय में भी विद्यमान थे। ऐतिहामिक काव्य रचयिताओं ने, जिनमें बौद्ध और जैन भी सम्मिलित है, बौद्धकाल से बहुत पहले ही संचित हो चुकने वाली कथा-कहानियों अर्थात् इतिहास, ब्राख्यान, पुराण और गाथाओं के श्राव्य कोश से पर्याप्त लामग्री प्राप्त की। महाभारत में 'ge sarai' at उल्लेख पाया जाता है, जो शायद ऐतिहासिक काव्य के ढंग को किन्हीं प्रवीन कविताओं की प्रोर संकेत करता है । अनुमान किया जाता है कि ऐतिहासिक काव्य के ढंग की सैंकड़ों पुरानी कहानियों ने अनेक ऐतिहासिक काव्यों की रचना के लिए पर्याप्त सामग्री दी होगी । इन्हीं काव्यों के आधार पर और इन्हीं की काट-छांट करके हमारे रामायण र महाभारत नामक महाकाव्यों की रचना हुई होगी । यह अनुमान इस बात से और भी पुष्ट होता है कि रामायण और महाभारत में जैसे श्लोक हैं, ऐसे ही अनेक श्लोक अन्य ग्रन्थों में भी पाया जाते हैं । और यह बात तो महाकाव्य में उसके कवि ने स्वयं स्वीकार की है कि वर्तमान ग्रन्थ मौलिक अन्य नहीं है। देखिए -- आचख्युः कवयः केचित् सम्प्रत्याचक्षते ऽपरे । प्राख्यास्यन्ति तथैवान्ये इतिहासमिमं भुवि ॥
अर्थात् इस इतिहास को कुछ कवि इस जगत् में बहुत पहले कह चुके हैं, कुछ कहते हैं तथा कुछ भी कहेंगे ।
१ बाद के वैदिक ग्रन्थों में पुराण और इतिहास के अध्ययन से देवता प्रसन्न होते हैं, ऐसा वर्णन मिलता है । वस्तुतः इतिहास पुराण 'पाँचवाँ 'वेद' कहा गया है ।