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अर्थात् कृष्णादि छः प्रकार के पुद्गल द्रव्यों के सहयोग से स्फटिक के परिणमन की तरह होने वाला आत्म-परिणाम लेश्या है।
जीवन में बदलाव का पहला चरण है.-श्रवण । उसकी अगला चरण है मनन । जो कुछ सुना उस पर मनन बहुत जरुरी है। मनुष्य के पास विकसित भाव तन्त्र है अतः वह श्रेष्ठ प्राणी बन गया ।
वर्धमान अवधि ज्ञान के समय प्रशस्त लेश्या के साथ शुभ अध्यवसाय व शुभ परिणाम होते हैं।
उदायी और भूतानंद---ये दोनों श्रेणिक राजा के पुत्र कोणिक राजा के प्रधान हस्ति थे। ये दोनों हस्ति कापोत लेश्या में काल को प्राप्त कर रत्नप्रभा नारकी में एक सागरोपम की उत्कृष्ट स्थितिवाले नरकावास में नारकी रूप में उत्पन्न हुए। फिर वहाँ से कापोत लेश्या में मरण को प्राप्त कर महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य रूप में उत्पन्न होंगे। वहाँ सर्व दुःखों का अंत करेंगे। १ .
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीव, काल, क्षायिक भाव और औपशमिक भाव आदि अपौद्गलिक हैं। औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेजस, ध्वनि, ( भाषा ), मन, उच्छ्वास, निःश्वास, कार्मण शरीर, कर्म, छाया, अधकार, अनन्तीवर्गणा, आतप, मिश्रस्कंध, अचित्तमहास्कन्ध, वेदक समकित, क्षायोपशम समकित और उद्योत-ये पौद्गलिक है ।२
अवगाढ-कृष्ण लेश्या आदि छओं लेश्याओं में से प्रत्येक लेश्या असंख्यातअसंख्यात आकाश प्रदेशों में रही हुई है।
वर्गणा-कृष्ण लेश्या योग्य द्रव्य परमाणुओं की अनंत वर्गणाए हैं। इसी तरह शेष लेश्याओं के योग्य द्रव्य परमाणुओं की भी अनंत-अनंत वर्गणाएं हैं।
शरीर, मन और भाव तीनों को रंग प्रभावित करते हैं। मनुष्यों पर बाहरी पदार्थों का जो प्रभाव होता है, उसमें सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला रंग है। रंगों के आधार पर लेश्या में परिवर्तन किया जा सकता है। भगवान् महावीर ने कहा-कृष्ण लेश्या केवल नील लेश्या में ही परिणत नहीं होती किन्तु वह कापोत लेश्या, तेजो लेश्या, पद्म लेश्या, और शुक्ल लेश्या के रूप में भी परिणत हो जाती है। थोड़े अच्छे पुद्गलों का योग मिला कृष्ण लेश्या के
१. भग० श १७ । उ २ । सू१ से ४ २. प्रकरण रत्नावली, विचार पंचाशिका पृ० ६६, ६७
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