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कसायपाहुडसुत्त (३) चूर्णिसूत्रोंमे कुछ सूत्र ऐसे भी हैं, जो वस्तुतः एक थे, किन्तु टीकाकारने व्याख्याकी सुविधाके लिए उन्हे दो सूत्रोमें विभाजित कर दिया है । जैसे१. पृ० १७७, सू० २. तत्थ मूलपयडिपदेसविहत्तीए गदाए । (पृ०१८४) ३. उत्तर
पयडिपदेसविहत्तीए एगजीवेण सामित्तं । २. पृ० ४६७, सू० ६. एदाणि वेवि पत्तेगं चउवीसमणियोगद्दारेहि मग्गियण । १०.
तदो पयडिट्ठाण-उदीरणा कायव्या । ३. पृ० ५१६ सू० ३८४. मूलपयडिपदेसुदीरणं मग्गियूण । ३८५. तदो उत्तरपयडिपदेसुदीरणा च समुक्त्तिणादि-अप्पाबहुअंतेहिं अणियोगद्दारेहि मग्गियव्या । इत्यादि
ऊपर दिये गये इन तीनो ही उद्धरणों में अंकित सूत्र वस्तुतः दो-दो नहीं, किन्तु एकएक ही हैं, किन्तु जयधवलाकारको उक्त तीनों ही स्थलोपर उच्चारणावृत्ति के आश्रयसे कुछ वक्तव्यविशेष कहना अभीष्ट था, इसलिए उपयुक्त तीनों सूत्रोंके 'गदाए' और 'मग्गियूण' पदोसे उन्हें विभाजित कर पूर्वार्ध और उत्तरार्धकी पृथक् पृथक् टीका की है।
इसी प्रकार प्रायः सभी स्थलों पर 'तं जहा' को पृथक् सूत्र माना है, तो कहीं कहीं उसे पूर्व या उत्तर सूत्रके साथ सम्मिलित कर दिया गया है । यथा१. पृ० ४६, सू० २६. पदच्छेदो । तं जहा-पयडीए मोहणिज्जा विहत्ति त्ति एसा
पयडिविहत्ती । २. पृ० ६१, सू० ७. तं जहा । तत्थ अट्ठपदं-एया द्विदी हिदिविहत्ती, अणेयाश्रो
द्विदीओ हिदिविहत्ती ।
___ हमने दो-एक अपवादोंको छोड़कर प्रायः उक्त प्रकारके सर्व स्थलो पर जयधवलाटीकाका अनुसरण किया है, अतएव जहाँ पर जितने अंशकी पृथक् टीका की गई है, वहाँ पर हमने उतने अंश पर पृथक् सूत्राङ्क दिया है।
चूर्णिकारकी गाथा-व्याख्यानपद्धति--कसायपाहुडके चूर्णिसूत्रोंपर आद्योपान्त दृष्टि डालने पर पाठकको उनकी गाथा-व्याख्यानपद्धतिका सहजमे ही बोध हो जाता है। वे सर्व-प्रथम वक्ष्यमाण गाथाका अवतार करने के लिए उसकी उत्थानिका लिखते हैं, पुनः उसकी समुत्कीर्तना और तत्पश्चात् उसकी विभापा करते है। गाथासूत्रोंके उच्चारणको समुत्कीर्तना कहते हैं और गाथासूत्रसे सूचित अर्थ के विषय-विवरण करने को विभापा+ कहते हैं । विमापा भी दो प्रकारकी होती हैं एक प्ररूपणाविभापा और दूसरी सूत्रविभापा । जिसमें सूत्रके पदोंका उच्चारण न करके सूत्र-द्वारा सूचित किये गये समस्त अर्थकी विस्तारसे प्ररूपणा की जाती है, उस प्ररूपणाविभापा कहते है और जिसमें गाथासूत्रके अवयवभूत पदोके अर्थका परामर्श करते हुए सूत्र-स्पर्श किया जाता है उसे सूत्रविमापा कहते हैं।
& समुक्तित्तण णाम उच्चारणविहासण णाम विवरण । जयघ० + सुत्तेण मूचिदत्यस्म विसेसियूण भासा विहासा विवरण ति वुत्त होदि । जयव०
* विहासा दुविहा होदि-गरूवरणाविहासा मुत्तविहामा चेदि । तत्य पावणाविहामा णाम सुत्तपदाणि अणुच्चारिय सुत्तसूचिदासेसत्यस्स वित्यरपरूपणा । मुतविहासा णाम गाहामुत्तारणमवयवत्य. परामरसमुहेण सुत्तफासो । जयव०