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वर्ष २ किरण १]
उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी पिणी जैसे सुन्दर शब्द, जो संसारकी सम्पूर्ण इसके अलावा कलियर ब प्रारम्भ हुआ, अस्थाओंके भावको प्रकट करते हैं, अन्य शास्त्रों इस विषयमें शास्त्रकारों तथा आधुनिक विद्वानों में तथा अन्य भाषाओंमें उपलब्ध नहीं हैं। और भयानक मत-भेद पाया जाता है । यथा :इमलिये भारतवर्ष इसपर अभिमान भी कर (१) मदरासके प्रसिद्ध विद्वान विलण्डो०के० अय्यर सकता है, क्योंकि भारतके सिवा अन्य देशोंमें का मत है कि, कलियुगका प्रारम्भ १११६
__वर्ष शक पूर्व है। इतना मौलिक और उपयुक्त नामकरण नहीं पाया। जाता है।
___ (२) रमेशचन्द्रदत्त और अन्य अनेक पाश्चात्य
पण्डितोंका कथन है कि कलियुगका प्रारम्भ ___ यह दुर्भाग्यकी बात है कि भारतमें साम्प्रदायिक
१३२२ वर्ष शक पूर्व है। कलहका बीजारोपण हुआ और उसके फल इतने कड़वे एवं भयानक निकले कि उनके स्मरण मात्रसे
(३) मिश्र-बन्धुओंने सिद्ध किया है कि २०६६ वर्ष
शक पूर्व कलिका प्रारम्भ हुआ। हृदय काँप उठता है । बम जिस नामको जैन धर्म
(४) राज तरंगणीके हिसाबसे २५२६ वर्ष शक म्वीकार करता है उसको हम कैसे स्वीकार करें ?
पूर्व कलिका प्रारंभ ठहरता है। इस प्रकारकी भावनाएँ आपसके विरोधस उत्पन्न (५) वर्तमान पञ्चांगोंके हिसाबसे तथा लोकमान्य हो गईं ! इसीलिये उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीके तिलक आदिके मतसे ३१७६ वर्ष शक पूर्वका स्थानपर पुगणकारोंने मर्ग और प्रतिसर्ग नामों- समय प्राता है। की रचना की तथा श्रारोंके स्वाभाविक कथनके (६) कैलाशवासी मौडकके मतम कलिका प्रारम्भ स्थानपर मन्वन्तरॉकी कल्पना की गई और कलि- समय ५००० वर्ष शक पूर्वका है। युग आदिकी भद्दी कल्पनाका भी जन्म हुआ। (७) वेदान्तशास्त्री विल्लाजी रधुनाथ लेलेके मत
से ५३०६ वर्ष शक पूर्व कालका प्रारम्भ मन्वन्तरॉकी कल्पना किम प्रकार प्रचलित हुई,
हुआ। इसका वर्णन हम 'भारतका आदि सम्राट्' पुस्तक
हमने यहाँ सात मनांका दिग-दर्शन कराया में कर चुके हैं। कलियुग आदिकी कल्पना नवी- है। इसी प्रकार अनेक मत हैं, जिनको स्थानानतर है, इसको अाजकलके प्राय: मभी ऐतिहा- भावसे छोड़ दिया गया है । पाठक वृन्द ११००की मिकोंन मुक्त कंठसे स्वीकार किया है। वैदिक मल तथा ५३००की संख्याओंका भेद कितना विशाल मंहिताओं में कृत, कलि आदि शब्द जूये (यून) ।
है, इसको जरा ध्यानसे देखें । इस भारी अन्तरका
(जून) कारण यह है कि वास्तव में कभी कलियुग प्रारम्भ के पासोंके अर्थमें ही प्रयुक्त हुए हैं। अतः यह ही नहीं हुआ। यह एक निराधार कल्पना है, निश्चित है कि वैदिक समयमें कालकं विभाग जिसको विरोधमें उपस्थित किया गया था । कलियुग आदिके नाममे नहीं थे। उसके पश्चात् इसलिये किसीने कुछ अनुमान लगाया नो किमीने 'ब्राह्मण' ग्रन्थोंमें भी कलि आदि शब्द युगके कुछ धारणाकी । इसीप्रकार कलयुगकी ममामिके अर्थमें प्रयुत्त हुए नहीं देखे जाते। और इसलिय विषयमें भी मतभेद है। नागरी-प्रचारिणीपत्रिका यह स्पष्ट है कि कलि आदिकी कल्पना नवीनतम भाग १० अंक १ में एक लेख भारतके सुप्रसिद्ध तथा अवैदिक है।
ऐनिहामिक विद्वान स्वर्गीय श्रीकाशीप्रमादजी