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पर जब से प्रभु के चरण-कमल को देखा, तब से हमारे कठिन दुःख और दोष (पाप) दूर हो गये। भीलों के ये वचन सुन अयोध्यावासी प्रेममग्न हो गये। यह भीलों का आत्म निवेदन उनके हृदयपरिवर्तन का प्रतीक है।
श्रीराम की सन्निधि पाने वाले पुरुष ताप-शाप मुक्ति का अनुभव करते। जब भरत शोकमग्न थे तब वन में श्री राम से मिले तो उन्होंने भी दुःख मुक्ति का अनुभव किया। श्रीराम का प्रभाव अचिंत्य था। उनके प्रसाद से चित्रकूट पर्वत कामनाओं को देने वाला हो गया, देखते ही शोक को हर लेता था। सरोवर, नदी, वन और भूमि के विभाग में मानो प्रेम का समुद्र उमड़ रहा है। बेलि
और वृक्ष सब फल से लद गये। पक्षी, पशु और भौरे समय के अनुसार बोली बोलने लगे। उस समय वन अधिक आनन्द दायक हो गया। सबको सुख देने वाली तीनों प्रकार की (शीतल, मन्द और सुगन्धित) वायु बहने लगी।
रामचरित् मानस के उत्तरकाण्ड में श्री राम के वनवास जीवन के चौदह वर्ष पूर्ण होने पर पुनः आगमन और राम-राज्य संचालन का वर्णन है। राम भक्त भरत को राम के आगमन की सूचना देने आये तब भरत का जीवन चरित्र देखकर भाव विभोर हो उठे और राम के सन्मुख भरत के बड़े प्रेम से शील, स्नेह तथा व्रत का वर्णन करने लगे। यहाँ व्रत शब्द का प्रयोग भरत की नियमादि शील चर्या एवं सत्य अहिंसादि आचरण हेतु किया गया है। परन्तु स्वतंत्र रूप से अहिंसा शब्द का प्रयोग यहां भी नहीं मिलता। सामान्यतया 'व्रत' में अहिंसादि व्रतों को ही ग्रहण किया जाता है। उत्तरकाण्ड में इस बात का उल्लेख किया गया कि श्री राम के आलोकिक जीवन चरित्र का स्मरण करने वाले के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इससे भी द्योतित होता है कि श्री राम अहिंसा के पर्याय थे उनका नाम स्मरण मात्र रोग, लोभ, घमण्ड, मद, विपत्ति भंजक होता है।
श्री राम के राज-सिंहासन पर आरूढ़ होने पर अयोध्या में जो शुभ घटित हुआ उसका सांगोपांग चित्रण रामायण के उत्तरकाण्ड में है। रामराज्य को अहिंसक राज्य कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। उल्लेख है राम के राज्यारोहण से तीनों लोक प्रसन्न हो गये और उनके सब दुःख दूर हो गये। कोई किसी से वैर नहीं करता। उनके प्रभाव से सबके मन की विषमता दूर हो गई। सभी लोग अपने-अपने वर्ण और आश्रम के अनुकूल धर्म में तत्पर है। किसी को भय, शोक और रोग नहीं है। राम-राज्य में किसी को दैहिक, दैविक और भौतिक ताप नहीं व्यापता। सब लोग आपस में प्रेम करते और वेद रीति से अपने धर्म में मन लगाकर चलते हैं। संसार में धर्म के चारों चरण पूर्ण रीति से विद्यमान हैं। पाप तो स्वप्न में भी नहीं है। सब नर-नारी श्री राम की भक्ति मन से करते हैं और सभी मुक्ति के अधिकारी हैं। इससे यह बहुत स्पष्ट होता है कि धर्म और मोक्ष की आराधना करने वाले अहिंसा का आचरण अवश्यमेव करते हैं।
रामराज्य में न तो अकाल मृत्यु ही होती है और न कोई पीड़ा ही होती है। सब लोग सुन्दर और आरोग्य शरीर वाले हैं। न कोई दरिद्र है, न कोई दीन दुःखी है, न कोई अज्ञानी है और न शुभ लक्षणों से हीन है। सब पाखंड रहित, धर्म में रत व पुण्यात्मा है। पुरुष और स्त्री सभी चतुर और सुकर्मी हैं। सभी गुणी, पंडित, ज्ञानी तथा कृतज्ञ हैं। कपट और धूर्तता किसी में नहीं है। हे मरुड़जी! सुनो, संसार भर में राम-राज्य में काल, कर्म, स्वभाव तथा गुणों में उत्पन्न दुःख कभी किसी को नहीं होता। राम-राज्य के सुख और सम्पत्ति को शेषजी और सरस्वती भी नहीं कह सकते।
वन में वृक्ष सदा फूलते-फलते हैं। हाथी और सिंह एक साथ रहते हैं। पशु-पक्षी स्वाभाविक
अहिंसा का ऐतिहासिक स्वरूप | 41