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वर्तमान का सारा प्रवाह सिर्फ धन की ओर है। जैसे भी हो धन अर्जित करें, यह आदमी का एकमात्र लक्ष्य हो गया है। इस प्रवाह को, इस चिंतन को मोड़ने का उपाय सिर्फ व्रत है। छोटे-छोटे व्रत, जिनसे चिंतन की धारा बदलती है, जो जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाते है। परिवर्तन का यह विशिष्ट उपक्रम किसी धर्म-विशेष से जुड़ा हुआ नहीं है बल्कि सब धर्मों का समन्वित रूप है। क्योंकि व्रत सभी आस्तिक धर्मों का आत्मतत्व है। व्रत के मौलिक विभाग पाँच है। शेष सब उसकी व्याख्याएँ हैं। पाँचों में भी मूलभूत व्रत एक अहिंसा है। सत्य आदि उसी के पहलू हैं।' प्रस्तुत आंदोलन का आग्रह केवल नैतिकता के आचरण से है। धार्मिक आस्था का कोई प्रतिबंध नहीं। यह भावना मूलक व्रत का आंदोलन है।
अणुव्रत आंदोलन आचार-शुद्धि और व्यवहार शुद्धि का आंदोलन है। दूसरे के प्रति हमारा व्यवहार क्रूरता से मुक्त हो। ऐसा होने से ही 'मानवाधिकार आयोग' का कार्य सुगम होगा। अणुव्रत मानव धर्म का संपोषक है। महाभारत में कहा गया-'न मानुषात् श्रेष्ठतरं हि किचिंत्' इस दुनिया में मनुष्य से श्रेष्ठ कोई नहीं है। इस आधार पर धर्म का एक नाम बन गया-मानव धर्म । मानव के साथ धोखाधड़ी मत करो, लूट-खसोट मत करो, अप्रामाणिकता मत करो। उसे मत सताओ। यह मानव धर्म का स्वरूप बन गया। धर्म का दूसरा स्वर है-प्राणी मात्र के साथ समता का व्यवहार करो। ये दोनों धाराएँ उद्घोषित होती रही हैं किन्तु आचरण शायद दोनों का ही नहीं हो रहा है। न प्राणी के प्रति समता का आचरण हो रहा है और न मानव के प्रति। यह सार्वभौम धर्म जीवन के व्यवहार में नहीं उतर रहा है। अणुव्रत आंदोलन का प्रयत्न सार्वभौम धर्म को व्यवहार में अवतरित करने का है। इसके लिए एक मानवीय आचार संहिता* प्रस्तुत की गई है।
अणुव्रत के निदेशक तत्त्व इसके विराट् स्वरूप के साक्षीभूत हैं। वे निम्न हैं. दूसरों के अस्तित्व के प्रति संवेदनशीलता। • मानवीय एकता। . सह-अस्तित्व की भावना। . साम्प्रदायिक सद्भाव। . अहिंसात्मक प्रतिरोध। . व्यक्तिगत संग्रह और भोगोपभोग की सीमा। . व्यवहार में प्रामाणिकता। • साधन-शुद्धि की आस्था। • अभय, तटस्थता और सत्य निष्ठा।
इन तत्त्वों की संयोजना से स्पष्ट है कि अणुव्रत सार्वभौम धर्म का व्यावहारिक रूप है। आंदोलन के स्वरूप को विभिन्न आयामों से व्यापकता प्रदान की गई।
अणुव्रत का उद्घोष भोगवादी अथवा पदार्थवादी दृष्टिकोण का परिष्कार नैतिकता की मूल इकाई है। इसे प्रायोगिक स्तर पर प्रतिष्ठित करने की आकांक्षा से अणुव्रत आंदोलन ने घोष दिया-'संयमः खलु जीवनम्-संयम ही
* परिशिष्ट : 4
अहिंसा का आंदोलनात्मक स्वरूप / 291