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है। ब्रिटेन ने जाहिर तौर पर इस तरह नेकदिली और दोस्ती के साथ हिन्दुस्तान छोड़ दिया, उससे यह उम्मीद मालूम होती है कि अहिंसा की कदर सिर्फ आपके ही मुल्क तक महदूद नहीं है। मालूम होता है कि हिंसा की मजबूत, मोटी दिरवालें पहली बार कहीं-कहीं कुछ टूटी है और इन्सानी समाज के लिए कुछ भले दिन आने वाले हैं।' गांधी की टिप्पणी थी हिन्दुस्तान को बहादुरों की अहिंसा का तजुरबा नहीं है। बहादुरों की अहिंसा दुनिया में सबसे बड़ी शक्ति है। आज की दुःखी दुनिया के उद्धार के लिए तलवार की धार जैसी अहिंसा के दुर्गम मार्ग के सिवा दूसरी कोई आशा नहीं है। हो सकता है कि इस सत्य को साबित करने में मेरे जैसे करोड़ों आदमी असफल रहें लेकिन यह असफलता अहिंसा के सनातन नियम की नहीं, बल्कि उन करोड़ों की होगी। यह उनकी अहिंसा आस्था की मिशाल है।
आस्था जब मुखर होती है तो वह जीवन की सच्चाई का रूप धारण कर लेती है। गांधी के साथ भी अहिंसा का अनुबंध कुछ ऐसा ही था। उन्होंने अनेक प्रसंगों पर कहा : मैं खुद तो अपने अहिंसा के उसूल में तबदीली नहीं कर सकता, अहिंसा मेरे लिए एक उसूल ही नहीं, वह मेरे जीवन का सत्य बन गई है। जिसका आधार मेरा बरसों का तजुरबा है। जो आदमी बार-बार मीठे सेब खा चुका है, उसे उन्हें कड़वे कहने के लिये कैसे राजी किया जा सकता है, वे लोग सेब नहीं खाये बल्कि सेब की तरह दिखाई देने वाले कोई दूसरे फल खाये हैं। अहिंसा को साम्राज्यवादियों के छिपे या खुले कामों से डरना नहीं चाहिए। यह विचार मुस्लिम लीग की समस्या के दौरान गांधी ने रखा था जिसका स्पष्ट आशय था कि अहिंसक आस्था में समाधान की शक्ति छुपी है।
नागासाकी और हिरोशिमा पर हुए अणुबम के प्रयोग गांधी की अहिंसक आस्था को हिला नहीं सके, अपितु बरबादी की खबर पाकर उन्होंने यही कहा-'यदि दुनिया अब भी अहिंसा को नहीं अपनाती है तो मानव जाति आत्महत्या से नहीं बचेगी। दुनिया को प्रेरित करते हुए उन्होंने कहा- 'एटम बम की इस बेहद दर्दनाक कहानी से हमें सबक तो यह सीखना है कि हिंसा से हिंसा को नहीं मिटाया जा सकता। इन्सान सिर्फ अहिंसा की मार्फत ही हिंसा के गढे में से निकल सकता है। नफरत को सिर्फ प्यार से ही जीता जा सकता है। मैंने कोई किताबी बात नहीं कही थी। मैं यह मानता हूँ कि जो चीज मेरी रग-रग में भरी है, उसी को मैंने जोरदार शब्दों में कहा है। साठ साल तक इस चीज को जीवन के हर एक क्षेत्र में आजमाकर मेरी श्रद्धा और भी पक्की हई है और दोस्तों के तजुरबे से भी उसे ताकत मिली है। यह एक ऐसी जड़ की सच्चाई है कि आदमी अगर अकेला हो तो भी बगैर किसी झिझक के इस पर डटकर खड़ा रह सकता है। मैक्समूलर ने बरसों पहले कहा था-'जब तक सत्य पर विश्वास रखने वाले मौजूद हैं, सत्य को दुहराना ही पड़ेगा।' मैं इस बात को मानता हूँ।” स्पष्ट रूप से जब सारी दुनिया एटम बम की विनाश लीला से भयभीत थी, उस समय भी गांधी ने अहिंसा में इसका समाधान देखा।
__ अहिंसा की अटूट आस्था का बल प्राप्त था, जिसकी बदौलत वे सदैव शक्ति संपन्न बने रहे। उन्होंने स्वीकारा-'मेरे में अहिंसा और सत्य के सिवाय कोई नीति चातुर्य नहीं है।'
आचार्य महाप्रज्ञ की अहिंसा आस्था उनके अखंड अहिंसक जीवन का सबूत थी। ताजिंदगी अहिंसा को प्राणवान बनाने में अपनी शक्ति का नियोजन किया। नैतिकता और अहिंसा के अपरिहार्य संबंध को सामाजिक धरातल पर प्रस्तुति दी-स्वस्थ समाज के लिए जरूरी है नैतिक मूल्यों के प्रति आस्था जागे। अहिंसा और नैतिकता को अलग नहीं किया जा सकता। जब तक इसका व्यवहारिक
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