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18. इस काल में शारीरिक काम तो चालू ही रहेगा। पढ़ाई-लिखाई का समय जरूरत के अनुसार
बढ़ाया जाना चाहिये। 19. इस काल में माता-पिता का धंधा यदि निश्चित रूप से मालूम हो, तो बच्चे को उसी धंधे
का ज्ञान मिलना चाहिये और उसे इस तरह तैयार किया जाये कि वह अपने बाप-दादा
के धंधे से जीविका चलाना पसन्द करे। यह नियम लड़की पर लागू नहीं होता। 20. सोलह वर्ष तक लड़के-लड़कियों को दुनिया के इतिहास और भूगोल का तथा वनस्पति-शास्त्र,
खगोल-विद्या, गणित, भूमिति और बीजगणित का साधारण ज्ञान हो जाना चाहिये। 21. सोलह वर्ष के लड़के-लड़की को सीना-पिरोना और रसोई बनाना आ जाना चाहिये। 22. सोलह सो पचीस वर्ष के समय को मैं तीसरा काल मानता हूं। इस काल में प्रत्येक युवक
और युवती को उसकी इच्छा और स्थिति के अनुसार शिक्षा मिले। 23. नौ वर्ष के बाद आरम्भ होने वाली शिक्षा स्वावलम्बी होनी चाहिये। यानि विद्यार्थी पढ़ते हुए
ऐसे उद्योगों में लगे रहें, जिनकी आमदनी से शाला का खर्च चले। 24. शाला में आमदनी तो पहले से ही होनी चाहिये। किन्तु शुरू के वर्षों में खर्च पूरा होने लायक
आमदनी नहीं होगी। 25. शिक्षकों को बड़ी-बड़ी तनख्वाहें भी नहीं मिल सकतीं, किन्तु वे जीविका चलाने लायक तो ___ होनी ही चाहिये। शिक्षकों में सेवा-भावना होनी चाहिये। प्राथमिक शिक्षा के लिए कैसे भावी
शिक्षक से काम चलाने का रिवाज निन्दनीय है। सभी शिक्षक चरित्रवान होने चाहिये। 26. शिक्षा के लिए बड़ी और खर्चीली इमारतों की जरूरत नहीं है। 27. अंग्रेजी का अभ्यास भाषा के रूप में भी हो सकता है और उसे पाठ्यक्रम में जगह मिलनी
चाहिये। जैसे हिन्दी राष्ट्रभाषा है, वैसे ही अंग्रेजी का उपयोग दूसरे राष्ट्रों के साथ के व्यवहार और व्यापार के लिए है।
416 / अँधेरे में उजाला