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सकती है। इस सच्चाई को हम जानते हैं कि उस पारसमणि को जानते हुए भी वे सोना नहीं बना रहे हैं। अहिंसा की शक्ति को महाप्रज्ञ किस रूप में देख रहे थे समझा जा सकता है।
उन्होंने यथार्थ मूल्यांकन के लिए ध्यान को शक्तिशाली साधन बताया। अहिंसा का विकास करने के लिए, अपने आपको जानने के लिए, प्राणीमात्र की समानता को समझने के लिए, प्राणी मात्र के प्रति अहिंसा के सूत्र का, संवेदना के सूत्र का विकास करने के लिए ध्यान का प्रयोग महत्त्वपूर्ण है। अहिंसा की शक्ति असीमित है, अपेक्षा है उसका एक शक्तिशाली अस्त्र के रूप में प्रयुक्त करने की। उनका स्पष्ट अभिमत था कि राष्ट्र निर्माण में अहिंसा के मौलिक स्वरूप को अपनाया जाये। प्रायोगिक रूप से मूल इकाई व्यक्ति को माना जाये। उनके शब्दों में 'व्यक्ति-व्यक्ति के चरित्र निर्माण से ही राष्ट्र निर्माण संभव होगा। भावात्मक विकास के बिना चरित्र निर्माण नहीं होता तथा चरित्र के बिना राष्ट्र भक्ति टिकती नहीं है।' राष्ट्र के वफादार नागरिकों का चरित्र अहिंसा निष्ठ होगा तभी वे सच्चे-नेक राष्ट्रभक्त बन सकते हैं।
अहिंसा एक शक्ति है जिसमें छिपा है-विश्वास । इस विश्वास के सहारे व्यक्ति खुशहाल जिन्दगी जी सकता है। अपने मन को निर्मल बना सकता है। व्यक्तित्व का समुचित विकास कर सकता है। जीवन को शांति से चलाने के लिए अहिंसा की शक्ति का विकास अपेक्षित है। 'अहिंसा की शक्ति का अनुभव हर व्यक्ति को हो सकता है।” कर वही सकता है जिसने अहिंसा को जीवन में सम्यक् रूपेण प्रतिष्ठित किया है, व्यवहार के धरातल पर जीया है। अहिंसा की शक्ति असीम है, पर अब तक उस शक्ति का सही उपयोग नहीं हो पाया। इसका समुचित प्रयोग ही शक्ति का संवाहक है।
संयम का आचरण दोनों मनीषियों के भीतर संयम की चेतना का पर्याप्त विकास हुआ। यद्यपि आंशिक और पूर्ण संयम की दृष्टि से अन्तर है। पर जहाँ तक संयमी वृत्ति का प्रश्न है समान रूप से उसकी विद्यमानता देखी जाती है। संयम की चेतना व्यक्ति को आंतरिक सौंदर्य प्रदान करती है। यह गांधी एवं महाप्रज्ञ के जीवन में अक्षरशः लागू होता है। महात्मा गांधी के बारे में एक विचारक ने लिखा 'मैंने दुनिया में इतने भद्दे आदमी में इतना सौंदर्य नहीं देखा।' इस कथन से मेल खाता महाप्रज्ञ का कथन-महात्मा गांधी का वजन केवल सौ पाउंड था। शरीर हड्डियों का ढांचा मात्र था। किन्तु उनका सौंदर्य इतना प्रभावक था कि विश्व के बडे-बडे व्यक्ति उनके पीछे फिरते थे। उनके साथ पाँच-दस मिनट बैठकर. उनसे बातचीत कर अपने आपको धन्य मानते थे। इस विशाल सौंदर्य का कारण क्या था? उसका एकमात्र कारण था-संयम। महात्मा गांधी ने इतना कठोर संयम साधा, संयममय जीवन व्यतीत किया
प्रत्येक व्यक्ति उनके साथ रहने को ललचाता था और उनसे बात कर अपने आपको गौरवान्वित मानता था। यह उनकी संयमी वृत्ति का प्रभाव था।
___आचार्य महाप्रज्ञ का बाह्य सौंदर्य भी बहुत आकर्षक नहीं था, पर आंतरिक सौंदर्य के कारण कोई उनके सामने से उठने की इच्छा नहीं करता। वे महत्त्वपूर्ण से महत्त्वपूर्ण एवं समान्य से सामान्य व्यक्ति को अपनी ओर आकृष्ट करते थे। देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आचार्य महाप्रज्ञ के अन्तःसौंदर्य से अभिभूत हैं। उनके द्वारा निकले ये बोल इसके सबूत है-'आचार्य महाप्रज्ञ सम्प्रदाय से ऊपर हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव भाईचारा मेल मिलाप की भावना का विकास आचार्य महाप्रज्ञ जिस कशलता से कर रहे हैं उतना दूसरे नहीं कर सकते। इसलिए देश को आचार्य
अभेद तुला : एक विमर्श / 381