Book Title: Andhere Me Ujala
Author(s): Saralyashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 404
________________ एक ओर आर्थिक विकास, जन जागृति का कार्य प्रगतिशील बने दूसरी ओर नैतिक उत्थान एवं आध्यात्म की लौ प्रज्वलित होती रहे तो उस समाज का स्वरूप निश्चित रूप से आदर्शमान होगा। यथार्थ के धरातल पर मनीषियों की समाज विषयक संकल्पना को संयुक्त रूप से प्रतिष्ठित किया जाये तो समाज-व्यवस्था का मानचित्र अपने आपमें अपूर्व एवं परिपूर्ण होगा। समन्वित शिक्षण सर्वांगीण व्यक्तित्व निर्माण की पृष्ठभूमि में गांधी द्वारा बुनियादी शिक्षा एवं महाप्रज्ञ द्वारा जीवनविज्ञान शिक्षण का प्रारूप प्रस्तुत किया गया। इन दोनों की समन्वित प्रस्तुति आधुनिक शिक्षा जगत् की समस्याओं को समाहित करने में समर्थ है। व्यावहारिक एवं नैश्चयिक, वैयक्तिक एवं सामाजिक समस्याओं का समाधान समन्वित शिक्षण से सुगम बनेगा। गांधी ने बुनियादी शिक्षण के द्वारा बालक के मस्तिष्क और शरीर के विकास के साथ उसी प्रमाण में आत्मा की जागति हेत आध्यात्मिक यानी हृदय की तालिम पर बल दिया-मस्तिष्क का ठीक और चतुर्मुखी विकास तभी हो सकता है, जब बच्चे की शारीरिक और आध्यात्मिक शक्तियों को तालीम के साथ-साथ दिया जाता हो, ये सब बातें एक और अविभाज्य हैं। इसका लक्ष्य था शरीर, मन तथा आत्मा की उत्तम क्षमताओं को उद्घाटित करना। 29 प्रश्न है इन शक्तियों का उद्घाटन कैसे हो? केवल क्रियात्मक समाचरण, पुस्तकीय ज्ञान से भावनात्मक परिवर्तन घटित नहीं हो सकता। इस अभिष्ट की संपूर्ति हेतु आचार्य महाप्रज्ञ ने जीवनविज्ञान शिक्षण में प्रायोगिक विधि का समावेश कर परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया है। शाब्दिक उच्चारण मात्र से परिवर्तन घटित नहीं हो सकता इस सच्चाई का अनुभव करते हुए महाप्रज्ञ ने सिद्धांत के साथ प्रायोगिक प्रशिक्षण का समावेश कर परिवर्तन की प्रक्रिया को सुगम बनाया। जहां से संवेगात्मक तरंगें उत्पन्न होती है उस स्थान को प्रभावित और परिवर्तित करने में प्रयोगों की महत्त्वपूर्ण भूमिका बनती है। जीवन-विज्ञान के प्रयोगों द्वारा विद्यार्थियों में सकारात्मक परिणाम देखे गये हैं। जीवन-विज्ञान शिक्षण के द्वारा विद्यार्थी का समुचित-संतुलित विकास होता है। हिंसा और अहिंसा दोनों को प्रेरणा देने वाले तंत्र हमारे मस्तिष्क में विद्यमान हैं। क्रोध का आवेश, अहंकार, लोभ, भय, घृणा और काम-वासना-ये देश, काल और व्यक्ति भेद में सांप्रदायिक कट्टरता, जातीय संघर्ष, सत्ता की लोलुपता, बाजार पर प्रभुत्व और अपराध के रूप में प्रकट होते रहते हैं। हिंसा के इन बीजों का प्रयोगों द्वारा परिष्कार किया जा सकता है। एक विद्यार्थी जीवन-विज्ञान की प्रयोगशाला में जाता है तो उसके दाएँ मस्तिष्क के जागरण का प्रयोग कराया जाता है। 30 शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन लाने वाला प्रस्तुत प्रयोग अपने आपमें मौलिक है। प्रयोगतः बुनियादी शिक्षा एवं जीवन-विज्ञान की समन्वित क्रियान्विति शिक्षा जगत् में संपूर्ण क्रांति घटित करने में समर्थ है। अपेक्षा है इसके व्यापक प्रयोग की। अहिंसक आंदोलन : अहिंसा प्रशिक्षण आजादी की पृष्ठभूमि में जन चेतना को आंदोलित करने हेतु गांधी ने अहिंसक आंदोलन का सूत्रपात किया। इस प्रक्रिया के द्वारा एक ओर वे देश की जनता को जगाना तो दूसरी ओर सत्ता पक्ष का हृदय बदलना चाहते थे। गांधी द्वारा प्रवर्तित उस आंदोलनात्मक प्रक्रिया का संदर्भ बदल चुका है पर उसकी उपयोगिता आज भी बरकरार है। आंदोलन के बतौर प्रयोगात्मक स्तर पर संगठित अहिंसा 402 / अँधेरे में उजाला

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