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गांधी के उपवास
सन् 1913 फीनिक्स (द. अफ्रीका), आश्रम के दो सहयोगियों की नैतिक त्रुटि के लिए एक सप्ताह का उपवास । अगले साढ़े चार महीनों तक दिन में केवल एक बार भोजन । फीनिक्स में उपर्युक्त कारणों से पुनः 14 दिन का उपवास ।
12 मार्च, 1918 अहमदाबाद में अहमदाबाद के हड़ताली मिल मजदूरों को विचलित होते देखकर तीन दिन का उपवास ।
13 अप्रैल, 1919 साबरमती, रौलट सत्याग्रह के सिलसिले में नाड़ियाद में पटरी उखाड़े जाने
के प्रयास पर प्रायश्चित स्वरूप गांधी का तीन दिन का उपवास ।
9 से 13 नवम्बर 1921 बम्बई, प्रिंस ऑकवेल्स की यात्रा के दौरान दंगा और खून-खराबा होने पर पांच दिनों का उपवास ।
फरवरी के द्वितीय सप्ताह 1922 में बारडोली में चौरी-चौरा हत्याकांड के समय में पांच दिन का उपवास ।
18 सितम्बर 1924, दिल्ली कोहाट के हिन्दू-मुस्लिम दंगे के परिणाम स्वरूप 21 दिनों उपवास तथा हिन्दू-मुसलमानों द्वारा सद्भावना का आश्वासन ।
24 नवम्बर 1925, साबरमती में आश्रम सहयोगियों में त्रुटि पाकर सात दिन का उपवास । 20 सितम्बर 1932, यरवदा जेल मे मैक्डोनाल्ड के साम्प्रदायिक निर्णय के विरूद्ध आमरण अनशन की घोषणा । सोडा - सहित अथवा सोडाविहीन - जल के अतिरिक्त किसी प्रकार का भोजन न लेने का निश्चय । 26 सितम्बर को सरकार की ओर से समझौता करने पर अनशन - त्याग ।
22 दिसम्बर 1932 यरवदा जेल में अप्पासाहब पटवर्धन द्वारा जेल में भंगी कार्य की मांग पर तीन दिन का उपवास ।
8 मई, 1933 यरवदा जेल में आत्मशुद्धि हेतु इक्कीस दिन का उपवास तथा 29 मई को पूना की पर्णकुटी मे उपवास समाप्त ।
16 अगस्त, 1933 यरवदा जेल में सरकार द्वारा गांधीजी को पहिले की तरह जेल में हरिजन कार्य चलाने की सुविधा देने से इनकार करने पर तथा 23 अगस्त तक स्वास्थ्य चिंतनीय, बिना शर्त रिहाई।
7 अगस्त, 1934 वर्धा में कुछ सुधारकों द्वारा अजमेर में असहिष्णु व्यवहार प्रदर्शन के प्रयाश्चित स्वरूप सात दिन का उपवास ।
गांधी के उपवास / 413