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करने की संभावनाओं को चर्चाओं के माध्यम से उजागर करना चाहते थे। जिसके आधार पर अहिंसात्मक समाज-रचना का कार्य ज्यादा सुचारू रूप से एवं सूक्ष्म तरीके से किया जा सके।
राजनैतिक स्वाधीनता के पश्चात् गांधी का मुख्य कार्य सामाजिक और आर्थिक सुधारों का ही था और इन्हें क्रियान्वित करने के लिए वे अपनी अहिंसात्मक शैली को नया रूप देना चाहते थे, पर वैसा अवकाश उन्हें मिल नहीं पाया। गांधी चाहते थे गाँवों की पुनर्रचना का कार्य स्थायी एवं प्रभावी हो, इस हेतु उद्योग, हुनर, तन्दुरुस्ती और शिक्षा इन चारों का सुन्दर समन्वय रचनात्मक कार्य का अंग बनाया गया। 27 रचनात्मक कार्य की संपूर्ति कुछ हद तक महाप्रज्ञ की अहिंसक समाज संरचना में देखी जा सकती है। अहिंसक समाज का जो चित्रण किया उसमें सापेक्षता, समन्वय, सहअस्तित्व के क्रियान्वयन पर बल दिया गया है।
अहिंसक समाज संरचना की बाधाओं का जिक्र करते हुए महाप्रज्ञ ने बताया सामाजिक जीवन में हिंसा का मूल है-अनैतिक उपायों से अर्थ का अर्जन, उसका संग्रह और विलासात्मक उपयोग, जाति और धर्म-सम्प्रदाय के प्रति मिथ्या दृष्टिकोण। इसका जनक है वैयक्तिक हिंसामय जीवन जो मोहात्मक संस्कार, आवेश, उत्तेजना और भोगात्मक मानसिकता को बढ़ाते हैं। इस समस्या से उबरने के लिए व्यक्ति और समाज-व्यवस्था दोनों के युगपत परिवर्तन की अपेक्षा पर बल देते हुए स्पष्ट किया कि व्यक्ति अच्छा नहीं है तो अच्छी से अच्छी समाज व्यवस्था भी लड़खड़ा जाएगी। समाज व्यवस्था अच्छी नहीं है तो अच्छे से अच्छा व्यक्ति भी लड़खड़ा जाएगा। अहिंसा के प्रयोग से व्यक्ति को एवं राज्यसत्ता, सामाजिक सत्ता, आर्थिक सत्ता और अहिंसक सत्ता के समन्वय पूर्वक समाजव्यवस्था को बदला जाये।28 यह यथार्थ का आकलन है जिसके आधार पर अहिंसक समाज संरचना का सपना साकार किया जा सकता है। अहिंसक समाज रचना की पृष्ठभूमि में अहिंसामयी जीवन-शैली पर बल दिया गया। उन्होंने विशेष प्रकार की जीवन-शैली का प्रतिपादन किया। जिसमें आदर्श नागरिक के सभी मानक सन्निहित है।
अहिंसक जीवनशैली का पहला सूत्र है-अभय। निरंतर भयभीत रहने वाला हिंसा से बच नहीं सकता। भयभीत व्यक्ति अपने स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता हैं, फलतः उसे बीमारियां घेर लेती हैं। निरंतर अभय रहने वाला स्वस्थ रहकर आनंद और प्रसन्नता का जीवन जीता है।
अहिंसक जीवनशैली का दूसरा सूत्र है-करुणा। जिसके भीतर करुणा है, वह कभी किसी का अनिष्ट नहीं करेगा। अहिंसक जीवनशैली का तीसरा सूत्र है-सहिष्णुता। हम एक दूसरे को सहना सीखें। जहाँ एक दूसरे को सहने की मानसिकता होती है, वहाँ परस्पर शांति रहती है और विकास भी वहीं होता है।
अहिंसक जीवनशैली का चौथा सत्र है-जागरूकता। प्रमाद के कारण जीवन में बराइयों को प्रवेश पाने का अवसर मिल जाता है। जागरूक रहने वाला अपने जीवन को नया सौन्दर्य प्रदान कर सकता है। अहिंसक जीवनशैली के इन सत्रों को अपना कर व्यक्ति सखमय व शांतिपर्ण जीवन जीता हआ एक नये वातावरण का निर्माण करे, यही अपेक्षा है। यह जीवन शैली जन-जन में प्रतिष्ठित हो ताकि आदर्श समाज का सपना साकार बन सके। गांधी द्वारा प्रतिपादित रचनात्मक कार्य एवं महाप्रज्ञ द्वारा निर्दिष्ट अहिंसक समाज संरचना के प्रारूप को समन्वित रूप से क्रियान्वित किया जाए तो स्वस्थ समाज रचना साकार बन सकती है। चूंकि एक ओर व्यक्ति कर्मशील होगा दूसरी तरफ उसकी महत्त्वाकांक्षायें नियंत्रित होगी। परिणामतः समाज व्यवस्था नीतियुक्त होगी। व्यवहार के धरातल पर
समन्वय की दिशा : एक चिंतन / 401