________________
समन्वय की दिशा : एक चिंतन
प्रथम दृष्ट्या राष्ट्र पिता महात्मा गांधी का चिंतन राजनीति एवं लोक महर्षि आचार्य महाप्रज्ञ का चिंतन अध्यात्म धरा की परिक्रमा करता हआ प्रतीत होता है। सूक्ष्मता से देखे तो उस चिंतनधारा में व्यक्ति, समाज और राष्ट्र सभी संदर्भो को प्रभावित करने की क्षमता विद्यमान है। स्वतंत्र धाराओं से बहने वाली अहिंसा की विचार विथी में समन्वय के सूत्र संपृक्त है। समन्वय का आशय है-सैद्धांतिक मौलिकता को बरकरार रखते हुए एक विचार के साथ दूसरे का तालमेल होना। ऐसा तालमेल जो विकास की नई संभावनाओं को उजागर करे। गांधी एवं महाप्रज्ञ के विचारों में समन्वय का पर्याप्त अवकाश है। प्रस्तुत संदर्भ में महापुरुषों के अहिंसा संबंधी विचारों को समन्वय की कसौटी पर प्रस्तुत करना अभिष्ट है। अहिंसा की समन्वित प्रस्तुति गांधी की अहिंसा का क्रियात्मक शक्ति स्वरूप एवं महाप्रज्ञ की अहिंसा नीति को समन्वित रूप से समझने की कोशिश की जाये तो अहिंसा का एक नया रचनात्मक स्वरूप प्रकट हो सकता है। गांधी ने कहा था-'क्रियाहीन अहिंसा आकाश के फल के समान है। क्रिया से उनका तात्पर्य केवल हाथ पैर का संचलन ही नहीं, विचार मात्र क्रिया है। विचार-रहित अहिंसा हो ही नहीं सकती। उनकी दृष्टि में जो जीने के लिए खाता है, सेवा करने के लिए जीता है उसकी तुलना में मात्र पेट पालने के लिए कमाता है-वह काम करते हुए भी अक्रिय है। जिस कर्म में कर्तृत्व की बू नहीं होती स्वार्थ की भावना नहीं रहती वह कर्म अकर्म की ओर गतिशील बनता है। उन्होंने इस तथ्य को भी प्रकट किया कि अगर अहिंसा धर्म सच्चा धर्म हो तो हर तरह व्यवहार में उसका आचरण करना भूल नहीं, बल्कि कर्तव्य है। व्यवहार और धर्म के बीच विरोध नहीं होना चाहिए।........सब समय, सब जगह, संपूर्ण अहिंसा संभव नहीं, यों कह कर अहिंसा को एक ओर रख देना हिंसा है, मोह है और अज्ञान है। सच्चा पुरुषार्थ तो इसमें है कि हमारा आचरण सदा अहिंसा के अनुसार हो।
अहिंसा की व्यापक संयोजना की दृष्टि से आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा कि अहिंसा धर्म एवं नीति है और कूटनीति भी हैं। मैं मुनि हूँ मेरे लिए अहिंसा धर्म है, कुशल शासक के लिए अहिंसा नीति है, व्यापक और गूढ अर्थ में अहिंसा कूटनीति है। अहिंसा नीति के आधार पर ही विभिन्न जातियों, संप्रदायों और भाषाओं वाले लोगों को एकसूत्र में बांधकर रखा जा सकता है। अहिंसा कूटनीति है। शत्रुओं को दंड देने वाला उतना सफल नहीं होता। जितना उन्हें मित्र बनाने वाला होता है। यह
समन्वय की दिशा : एक चिंतन / 399