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पूर्ण विश्वास है कि भारत को दुनिया
लिए एक संदेश देना है। लेकिन यदि भारत ने हिंसात्मक साधनों को अपनाया तो यह परीक्षा का समय होगा। मेरा जीवन अहिंसा धर्म द्वारा भारत की सेवा के लिए समर्पित है।"" प्रस्तुत अभिमत में साधन शुद्धि का स्वर मुखर है।
अहिंसक साधनों से ही स्वराज्य प्राप्त हो यह गांधी की हार्दिक भावना थी । दृढ़ स्वर था - स्वराज्य प्राप्ति करने के साधनों का शुद्ध अहिंसात्मक होना आवश्यक है । भारत यदि हिंसात्मक साधनों को ग्रहण करले तो मैं जो दिलचस्पी भारतीय स्वराज्य में ले रहा हूँ, बन्द हो जाय। क्योंकि उस साधन का फल स्वतंत्रता नहीं, बल्कि स्वतंत्रता के पर्दे में गुलामी होगी। अभी तक हम जो स्वतंत्रता न प्राप्त कर सके उसका कारण यही है कि हम विचार, वाणी और आचार में अहिंसानिष्ठ नहीं रहे हैं। हाँ, यह बात सच है कि अहिंसा को हमने धर्म के रूप में ग्रहण नहीं किया-व्यवहारनीति के रूप में स्वीकार किया है। हम जानते हैं कि भारत वर्ष को दूसरे किसी साधन से स्वराज्य नहीं मिल सकता, किन्तु इसके कारण हमारी व्यवहारनीति में पाखण्ड को स्थान नहीं मिल सकता और न मिलना ही चाहिए | अहिंसा का स्वांग बनाकर हम हिंसा को आश्रय नहीं दे सकते। एक साध्य के लिए, एक नियतकाल तक अहिंसानिष्ठ होने का हम दावा करते हैं । " स्पष्टतया साध्य प्राप्ति हेतु साधन शुद्धि का सिद्धांत प्रकट हुआ है
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गांधी ने साध्य में बीज - वृक्ष का संबंध बतलाया । साधन बीज है और साध्य हासिल करने की चीज - पेड़ है । इसलिए जितना सम्बन्ध बीज और पेड़ के बीच है, उतना ही साधन और साध्य के बीच है । शैतान को भजकर मैं ईश्वर - भजन का फल पाऊँ यह कभी ही नहीं सकता। इसलिए यह कहना कि हमें तो ईश्वर को ही भजना है, साधन भले शैतान हो, बिल्कुल अज्ञान की बात है । जैसी करनी वैसी भरनी ।
साध्य की उपलब्धि में साधन की भूमिका को अधिक स्पष्ट करते हुए उनका कहना था- मुझे अगर आपसे आपकी ( व्यक्ति से) घड़ी छीन लेनी हो तो बेशक आपके साथ मुझे मार-पीट करनी होगी। लेकिन अगर मुझे आपकी घड़ी खरीदनी हो, तो आपको दाम देने होंगे। अगर मुझे बख्शीश के तौर पर आपकी घड़ी लेनी होगी, तो मुझे आपसे विनय करनी होगी । घड़ी पाने के लिए मैं जो साधन काम में लूँगा, उसके अनुसार वह चोरी का माल, मेरा माल या बख्शीश की चीज होगी। तीन साधनों के तीन अलग परिणाम आयेंगे ।7 मन्तव्य से प्रकट है कि साध्य की प्राप्ति में साधन का अनन्य योगदान रहता है। साधन की उपेक्षा कर वांछित साध्य की कल्पना नहीं की जा सकती । जीवन में साधनशुद्धि के सिद्धांत को अपनाया। अपने जीवन के प्रसंग का उल्लेख किया- मेरे जीवन में मुझे अपने प्रतिपक्षियों को गोली से उड़ा देने के और शहीदों के सिंहासन पर बैठने के कितने ही मौके मिले थे, परन्तु मेरे हृदय ने उनमें से किसी पर गोली झाड़ने का मार्ग स्वीकार नहीं किया, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि वे मेरा संहार कर डालें, फिर भले ही मेरे साधनों को वे कितने ही नापसन्द क्यों न करते हों। मैं चाहता था कि वे मुझे मेरी गलती समझा दें और मैं उन्हें उनकी गलती समझाने की कोशिश करता था, पर इस सूत्र का सदैव पालन किया- 'आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् । 88 इस कथन से स्पष्ट होता है कि गांधी ने लक्ष्य प्राप्ति से अधिक महत्त्व लक्ष्य साधक कारक को दिया।
साध्य-साधन शुद्धि के विचारों को सरल शब्दों में रखा जो मनुष्य बन्दूक धारण करता है और जो उसकी सहायता करता है, दोनों में अहिंसा की दृष्टि से कोई भेद नहीं दिखाई पड़ता । जो आदमी
384 / अँधेरे में उजाला