Book Title: Andhere Me Ujala
Author(s): Saralyashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 374
________________ कहा है कि अहिंसा को संकुचित अर्थों में न लें। उसके व्यापक स्वरूप को देखने और समझने का प्रयत्न करें। मानवोचित कर्म अहिंसा है, इससे इतर कर्म हिंसा है। जिससे स्वयं का और दूसरों का कल्याण हो, ऐसा हर कार्य अहिंसा है। जो स्वयं के लिए हानिकर हो और दूसरों को भी पीड़ा और दुःख पहुंचाएं, वह हिंसा है। अहिंसा और हिंसा को इसी दृष्टि से देखना चाहिए। सतत् अहिंसा की शोध में संलग्न आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रतिरोध और प्रतिकार को अहिंसा के आयाम बतलाते हुए बतलाया कि प्रतिरोध अपना बचाव है और प्रतिकार है परिस्थिति पर आघात। अहिंसा में प्रतिरोध और प्रतिकार की शक्ति नहीं रहे तो अनुपालक निर्वीर्य बन जाएगा, शक्ति-संतुलन हिंसा के हाथ में चला जायेगा। अहिंसा की प्रतिरोध शक्ति है स्वतन्त्र चेतना का अनावृत्तिकरण और उसकी प्रतिकार शक्ति है प्रेम का विस्तार। उतना विस्तार, जिसमें शून्य न हो तो अप्रीति के लिए कोई अवकाश न हो। जाहिर है कि अहिंसा की शक्ति में ही प्रेम का समावेश और अप्रीति का अन्त होता है। अहिंसा की मात्रा बढ़ती है, प्रेम का धरातल ऊंचा और निर्विकार होता है, उससे आनन्द का स्रोत फूट निकलता है। अहिंसा का अर्थ गौरव उनके शब्दों में प्रतिबिम्बित हुआ-अहिंसा का अर्थ है-निर्विकार दशा। मूलभूत विकार है-राग-द्वेष । व्यक्ति की प्रवृत्तियां जितनी राग-द्वेष रंजित होगी अहिंसा की चेतना उतनी ही धूमिल बनती जायेगी। दूसरी ओर हिंसात्मक प्रवृत्तियों में भी अहिंसा की साधना की जा सकती है। उनकी दृष्टि में युद्ध की प्रवृत्ति हिंसा है किन्तु उसमें भी निरपराध को न मारने, निहत्थों पर प्रहार न करने की वृत्ति अहिंसा है। व्यापार करना अहिंसा नहीं किन्तु व्यापार करने में झूठा तोलमाप व शोषण न करने और न ठगने की वृत्ति अहिंसा है। सिद्धान्त की भाषा में यों कहा जा सकता है कि राग-द्वेष से जितना बचाव किया जाए, वही अहिंसा है। तथ्यतः अहिंसा के मौलिक तत्त्व को व्यवहारिक धरातल पर प्रतिष्ठित किया गया है। वर्तमान युग की मांग है कि धर्म के तत्त्व को जीवन में समरस बनाया जाये। व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी अहिंसा को प्रस्तुत किया। अहिंसा का अर्थ है-गुस्से पर नियंत्रण करना तथा नशा नहीं करना। नशा और गुस्सा व्यक्ति को हिंसक बनाता है, पर वह हिंसा स्थूल रूप से दिखाई नहीं देती। महाप्रज्ञ स्पष्ट शब्दों में कहते-हमें या तो सीमा पर युद्ध दिखाई देता है या आंतक और उपद्रव की घटनाएँ दिखाई देती हैं। इसी के साथ हम आगे भी देखने का मानस बनाएं कि क्या आवेश कृत हिंसा कम है? आवेश में आकर आदमी अपने भाई को, पिता को, पत्नी को, पत्र को मार डालता है। वहाँ न कोई आतंक की बात है और न किसी उग्रवाद की बात है। व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी हिंसा को मात्र उकेरा ही नहीं अपितु अहिंसात्मक प्रशिक्षण के माध्यम से परिवर्तन की प्रविधि भी बतलाई। विचार वैशिष्ट्य के प्रवाह में से कतिपय बिन्दुओं का विमर्श मनीषियों के स्वतंत्र चिंतन को प्रस्तुत करता है। अहिंसा की धुरा पर परिक्रमा करने वाले विचार-प्रवाह में मौलिकता का निदर्शन है। मनीषियों की कर्मक्षेत्रीय भिन्नता से निष्पन्न विचारों में भिन्नता स्वाभाविक है। पर, अपने-अपने संदर्भ में विशिष्टता जीवंत है। अपेक्षा है उस विचार वैशिष्ट्य को यथार्थ के धरातल पर समझने और प्रायोगिक बनाने की। 372 / अँधेरे में उजाला

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