Book Title: Andhere Me Ujala
Author(s): Saralyashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 378
________________ वह मेरी गोद में मरी, इससे अच्छा क्या हो सकता है।' जेल के शिकंजों में भी गांधी ने यही कहा - 'यहाँ मुझे अपनी शक्ति के विकास का सुनहरा अवसर मिला है।' जब वे जेल से बाहर निकलते एक नई शक्ति - स्फुरणा की अनुभूति करते । विधायक भाव आचार्य महाप्रज्ञ की आध्यात्मिक प्रगति का राज है । आत्मान्वेषण की भूमिका पर वे यदा कदा कहते - चौरासी वर्ष की उम्र में मुझे याद नहीं कि कभी स्वप्न में भी किसी का • अहित-अनिष्ठ वांछा हो । उनकी सोच सदैव सकारात्मक रही है । महाप्रज्ञ का कहना है 'मेरे मन में किसी के प्रति घृणा, शत्रुता और द्वेष का भाव नहीं है । मन में सबके प्रति करुणा, संवदेना और आत्मौपम्य का भाव बहता है। इसी के परिणाम मानता हूँ कि जो भी हमारे पास आता है, अपनेपन का अनुभव करता है। 62 जहाँ तक विधायक विचारों के संप्रसार का प्रश्न है महाप्रज्ञ ने इसे बखूबी संपादित किया है। उनकी अनेक कृतियों में विधायक सोच की मीमांसा हुई है । 'कैसे सोचे ' ' विचार को बदलना सीखें' रचना में वैचारिक विशुद्धि पर विशेष रूप से बल दिया गया है। इस सत्य को उजागर किया कि अमंगल, नितान्त स्वार्थपरक एवं अनिष्ट विचार हिंसा के पर्याय हैं। इनसे बचना वैचारिक अहिंसा की दिशा में गतिशील बनने के लिए जरूरी है । वैचारिक धरातल पर अतीन्द्रिय चेतना/अहिंसक चेतना- विकास के मुख्य घटक हैं-बुरे विचार न आएँ । अनावश्यक विचार न आएँ। विचार बिल्कुल न आएँ ।” विधायक भाव की पृष्ठभूमि में वे भाव शुद्धिको महत्वपूर्ण मानते। उनका अभिमत रहा कि भाव का उद्वेग, भाव का आवेश उभरता है, हिंसक घटनाएँ घट जाती हैं। जितनी भी असामाजिक प्रवृत्तियाँ होती हैं, उसके पीछे काम कर रहा है भाव । भाव विशुद्ध अहिंसक जीवन की आधार भित्ति है । मन की पवित्रता और भावों की निर्मलता ही अहिंसा है। हिंसा और अहिंसा में मन और भावों का बड़ा योग रहता है। मन और भावना निर्मल नहीं है तो चेतना की पवित्रता को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता, जीवन भी अच्छा नहीं बन सकता । इस सच्चाई को आत्मसात् करते हुए महाप्रज्ञ ने निरन्तर विधायक भावों को जीया है। मनीषियों की सोच सकारात्मक भावों से परिपूर्ण बनी, यह उनके अहिंसा प्रधान जीवन का प्रतिफल कहा जा सकता है । आध्यात्मिक व्यक्तित्व : निस्पृहता क्रिया-कलापों के आधार पर व्यक्ति के व्यक्तित्व का आकलन किया जाता है । महात्मा गांधी एक रूप में गृहस्थ संन्यासी थे । आचार्य महाप्रज्ञ पँचमहाव्रतधारी संन्यासी हैं । महात्मा गांधी प्रथम दृष्टया भले ही राजनीतिक नेता थे, पर उनका अन्तःकरण अध्यात्म से भीगा हुआ था । करुणा- प्रेम, सत्यअहिंसा, मानवता उसके स्फुलिंग थे । अहिंसा का कर्मयोग ही उनका जीवन चरित्र बन गया। विचार, वाणी एवं व्यवहार की एकता उनका जीवन दर्शन बनी। स्वेच्छा से अपनाई हुई गरीबी, सादगी, विनम्रता और साधुता से वे असाधारण कहलाये । कार्ल हीथ के शब्दों में वे 'सत्य एवं मानवतावादी' थे।"" गांधी के लोकप्रिय आध्यात्मिक व्यक्तित्व में अभावग्रस्त - दरिद्र नारायण की समस्याओं का समाधान देखा गया । आम जनता के साथ एकाकार देखकर 'रवीन्द्रनाथ टैगोर' ने उन्हें 'महात्मा' कहा था। जॉन हेनेस ने लिखा- जब मैं गांधी के बारे में सोचता हूँ, मैं ईसा मसीह के बारे में सोचता हूँ। वो (गांधी) उसके जीवन को जीता है, उनके शब्दों को बोलता है, उसी तरह से कष्ट सहा है, श्रम करता है और एक दिन धरती पर उसका साम्राज्य लाने के लिये शानदार तरीके से बलिदान हो जायेगा । यह उनके आध्यात्मिक जीवन का निदर्शन है । 376 / अँधेरे में उजाला

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