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मनोवृति। ये दो हिंसा के बड़े कारण हैं। रोटी का अभाव भी हिंसा का एक बहुत बड़ा कारण है। भूखा आदमी कुछ भी कर सकता है। बाहरी कारणों में बेरोजगारी और असंतुलन की समस्या भी कम नहीं है। अहिंसा और शांति की बात बहुत प्रभावी नहीं बन रही है इस संदर्भ में समस्त समस्याओं का आकलन कर महाप्रज्ञ ने कुछ पंक्तियाँ लिखी
शांति का संदेश, देखने का कोण बदले। सोचने का कोण बदले, शांत हो आवेश।। हिंसा का कारण है रोटी, और गरीबी उसकी चोटी। पर भूखा हिंसा करता जब, शांत नहीं आवेश ।। जटिल परिस्थिति जब-जब आती, तब-तब हिंसा भी बढ़ जाती। स्थिति कैसे बदलेगी जब तक, शांत नहीं आवेश।। कभी क्रोध से, कभी लोभ से, कभी घृणा से, कभी क्षोभ से। आवेशित नर हिंसक बनता, शांत नहीं आवेश ।। हिंसा से विक्षित मानव है, शस्त्र प्रशिक्षण का तांडव है। कैसे हो मस्तिष्क धुलाई, शांत नहीं आवेश।। नहीं प्रशिक्षण और न शिक्षण, है कोरा उपदेश विचक्षण। कैसे हो जन-मान्य अहिंसा, शांत नहीं आवेश ।। नहीं समस्या को सुलझाएं, फिर अहिंसा के गुण गाएँ।
प्रासंगिकता कैसे होगी, शांत नहीं आवेश।। . महावीर का रूप अहिंसा, दिव्य शांति का स्तूप अहिंसा।
'महाप्रज्ञ' का जन-जन सुन पाएँ, शाश्वत का निर्देश ।।
अहिंसा की प्रतिष्ठा के लिए आवश्यक है-करुणा की चेतना का विकास। करुणा होगी तो हिंसा परास्त होगी, समस्या का समाधान होगा। कोई भी लड़ाई और युद्ध लम्बे नहीं चलते। आखिर शांतिवार्ता और समझौते पर आना ही पड़ता है। शांति हमारी संस्कृति है, शस्त्र हमारी विवशता है। अहिंसा हमारे आगे रहे और हिंसा पीछे रहे। विकास के लिए शांति और शांति के लिए अहिंसा आवश्यक है। हिंसा के कारणों को मिटा कर तथा करुणा का विकास कर हम अहिंसा की स्थापना कर सकते हैं। शांति स्थापन में अहिंसा प्रशिक्षण की अहम भूमिका को स्वीकारते हुए वे सामाजिक विकास के लिए भी इसे महत्त्वपूर्ण बतलाते हैं। उनकी दृष्टि में अहिंसा प्रशिक्षण के बिना नैतिक मूल्यों का विकास नहीं हो सकता। आज सरकार सामाजिक विकास के लिए कई तरह से कार्य कर रही है, किन्तु नैतिक मूल्यों के उत्थान की दिशा में कोई प्रगति नहीं हो पा रही है। हिंसा, शोषण, अत्याचार, भ्रष्टाचार पर कोई अंकुश नहीं लग पा रहा है। जरूरत है भावनात्मक परिवर्तन की और उसके लिए प्रशिक्षण बहुत जरूरी है। इसमें यथार्थ का निदर्शन है जो अहिंसा प्रशिक्षण की अनिवार्यता को प्रकट करता है।
क्या कभी सोचा गया कि जैसे सशस्त्र पुलिस और सेना की जमात खड़ी की जा रही है वैसे ही अहिंसक सैनिकों की जमात खड़ी करने की जरूरत है। जैसे प्रतिदिन हजारों-हजारों लोगों को शस्त्राभ्यास कराया जाता है, मारने की ट्रेनिंग दी जाती है वैसे ही क्या न मारने की ट्रेनिंग देना आवश्यक नहीं है। यह बहुत आवश्यक लगता है कि हिंसा की भाँति अहिंसा का प्रशिक्षण भी अत्यन्त अनिवार्य
312 / अंधेरे में उजाला