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होगा कि आखिर आतंकवाद ने अपने पैर क्यों पसारे। शक्तिहीनता और संवेदनहीनता ही आतंकवाद को जन्म देती है। इसलिए अपनी शक्ति को बढ़ाकर ही आतंकवाद से लड़ा जा सकता है। इसके अलावा समाज में जागरूकता लाकर और बेरोजगारी दूर करने के प्रयास से आतंकवाद काबू में आ सकता है।
आतंकवाद की सफाई में अहिंसा की भी महती भूमिका है। वही आतंकवाद से लड़ने का ब्रह्मास्त्र है। आतंकवाद एक व्यवसाय बन चुका है।......वाणी का असंयम भी आतंकवाद को बढ़ावा देता है। वाणी का संयम बढ़े तो समस्या का समाधान हो सकता है। समस्याओं पर गंभीर चिंतन भी जरूरी है।' 'हिंसा, उग्रवाद और आतंकवाद से निपटने के लिए अहिंसा प्रशिक्षण एक शक्तिशाली माध्यम है। इस विषय पर सामूहिक चिंतन किया जाए संभवतः हिंसा की बाढ़ को रोकने में सफलता मिलेगी।'
__ अहिंसा का विकास श्रमसाध्य कार्य है। उसके लिए प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। यदि अहिंसा के प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था हो तो अहिंसा के विकास की संभावना की जा सकती है। हिंसा की समस्या का स्थायी समाधान हो सकता है। इस मंतव्य के साथ ही महाप्रज्ञ इस सच्चाई की ओर इंगित करते हैं कि अहिंसा में विश्वास करने वाले जितने संस्थान हैं, क्या उनमें कहीं वैज्ञानिक प्रणाली से अहिंसा का शोध हो रहा है? प्रयोग हो रहा है? क्या कहीं हृदय-परिवर्तन का प्रयोग किया जा रहा है? यह तो सनने को मिलेगा कि साम्यवादी देशों में ब्रेन-वाशिंग का प्रयोग चल रहा है, प्रशिक्षण चल रहा है। किन्तु कहीं भी अहिंसा का प्रशिक्षण दिया जा रहा हो ऐसा सुनने में नहीं आता। एक ओर तो शक्तिशाली अस्त्रों का प्रयोग ओर एक और केवल भाषण। दोनों में सामंजस्य कहाँ है? आज प्रत्येक अहिंसावादी के सामने यह चिंतन का प्रश्न है। जब तक इस पर गंभीरता से चिंतन नहीं किया जाएगा, अहिंसा की दुहाई देने वाला व्यक्ति स्वयं हास्यास्पद बनता चला जाएगा। इस मंथन के साथ अहिंसक क्रांति के सूत्रधार ने इस बात को स्पष्ट शब्दों में कहा-अहिंसा की उपयोगिता पर शोध हो, व्यक्तिगत सामाजिक व राष्ट्रीय संदर्भ में गहन चिंतन हो अहिंसा प्रशिक्षण की पद्धतियाँ निर्धारित की जायें तभी वांछित परिणाम संभव है। अहिंसा यात्रा के प्रणेता ने यह भी बतलाया कि धर्म को मात्र ग्रंथों का विषय बना देने से दुःख बढ़ता है। धर्म तो जीवन के क्रम में आना चाहिए। आज जरूरी है अहिंसा की चेतना मनुष्य के मन में अंकुरित हो। इसके लिए हर वर्ग के लिए अहिंसा प्रशिक्षण की आवश्यकता है। अहिंसा को निरवीर्य देखकर महाप्रज्ञ की चेतना झंकृत हो उठती और सुर निनादित होता-आज अहिंसा को एक कौटिल्य की जरूरत है-ताकि अहिंसा की मजबूत व्यूह रचना का निर्माण हो सके। जिसका आधार स्तूप अहिंसा प्रशिक्षण बन सकता है। प्रशिक्षण के अभाव में अहिंसा मात्र एक शाब्दिक व्यापार बनकर रह जायेगी। प्रशिक्षण व चेतना रूपांतरण के बिना अहिंसा कभी हृदयग्राही नहीं हो सकती। वे बल पूर्वक कहते
. अहिंसा की व्यूह रचना मजबूत हो। . अहिंसा का नेटवर्क बने। . अहिंसा का प्रशिक्षण व्यापक बने। इनके आधार पर अहिंसा को काफी व्यापक बनाया जा सकता है।"
हिंसा के कारणों पर प्रकाश डालते हुए महाप्रज्ञ ने बताया एक बड़ा और आंतरिक कारण पाते हैं, वह है-आवेश। क्रोध, लोभ, मोह का आवेश-ये अंतरंग कारण हैं। बाहर का कारण है-उपभोगवादी
अहिंसा की तकनीक : अहिंसा प्रशिक्षण | 311