________________
बदल जाते हैं। रसायन आदमी के आचार और विचार को प्रभावित करते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ ने स्पष्ट शब्दों में कहा है प्रयोगों के बिना केवल उपदेश और प्रवचन से परिवर्तन घटित नहीं होगा।
अहिंसा के वैश्विक प्रयत्नों की मीमांसा करते हुए महाप्रज्ञ ने बतलाया विश्व के अनेक अंचलों में अहिंसक समाज रचना की दृष्टि से अनेक व्यावहारिक प्रयोग चलाए जा रहे हैं फिर भी एक बात शेष रह जाती है, वह है-अहिंसा के क्षेत्र में किए जानेवाले प्रयोग कितने चिरंजीवी और कितने सफल होते हैं, यह अपने आपमें एक समस्या है। इस समस्या को अहिंसा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों ने अनुभव किया होगा। प्रेक्षाध्यान अहिंसा का वस्तुनिष्ठ प्रयोग नहीं है, वह केवल आंतरिक चेतना के रूपान्तरण का हृदय-परिवर्तन का प्रयोग है। अहिंसा में आस्था रखने वाला दण्डशक्ति पर भरोसा नहीं करता। उसका विश्वास हृदय-परिवर्तन पर होता है। इस अपेक्षा से कहा जा सकता है-प्रेक्षाध्यान सामाजिक विषमता और आर्थिक असमानता के उन्मूलन का प्रयोग है।' प्रेक्षाध्यान की स्वस्थ समाज संरचना में अहं भूमिका देखी जा सकती है। परिवर्तन एवं निर्माण की विराट् आकांक्षा की संपूर्ति में प्रेक्षाध्यान की विस्तृत व्याख्या आदेय है। प्रेक्षा का उद्देश्य अध्यात्म का साधक वैज्ञानिक दृष्टि संपन्न होता है। उसमें सत्य के साक्षात्कार की क्षमता जाग जाती है जिसका लाभ सभी को मिलता है। महाप्रज्ञ ने आत्म साक्षात्कार के क्षणों में अध्यात्म की गहराई में पैठकर इस सचाई को पकड़ा और प्रस्तुति दी कि जब तक भावतंत्र में परिवर्तन नहीं होता तब तक व्यक्ति का रूपान्तरण नहीं होता। हमारे भावतंत्र का मूल उद्गम स्रोत है-हाइपोथेलेमस का एक भाग लिम्बिक सिस्टम, जहाँ से भावनाएँ उपजती हैं। हाइपोथेलेमस नियंत्रण करता है पिच्यूटरी ग्लैण्ड पर। पिच्यूटरी ग्लैंड का नियंत्रण है सब ग्रंथियों पर, विशेषतः एड्रिनल ग्लैण्ड पर।
महत्त्वपूर्ण है भावतंत्र का परिष्कार। उसके लिए कुछ प्रयोग विकसित किये गये हैं-प्रेक्षा और अनुप्रेक्षा के। व्यक्ति में कुछ विशेष वृत्तियाँ होती हैं-क्रोध, भय, लोभ, अहंकार और वासना की; इन वृत्तियों में परिवर्तन किया जा सकता है। उसके लिए कुछ प्रयोग किये गये। एक व्यक्ति के आवेश को बदलना है तो उसके ललाट के क्षेत्र का केन्द्र ज्योतिकेन्द्र, वहाँ लम्बे समय तक श्वेत रंग का ध्यान किया जाए, तो आवेश शांत हो सकता है, क्रोध और लोभ भी शांत होता है और आध्यात्मिक चेतना जागती है। जब अन्तर्मुखी चेतना जाग जाती है, आध्यात्मिक चेतना जाग जाती है तब दृष्टिकोण बदलना शुरू होता है। 18
महाप्रज्ञ के शब्दों में भावात्मक हिंसा को कम करे तो शरीर की हिंसा अपने आप कम हो जाएगी। इसके बिना मानसिक हिंसा कम नहीं होगी और जब तक मानसिक हिंसा कम नहीं होगी, कायिक हिंसा को रोका नहीं जा सकता। प्रेक्षाध्यान में महाप्रज्ञ ने एक आधार बनाया-व्याधि, आधि, उपाधि और फिर समाधि । व्याधि यानी शारीरिक वीमारी, आधि मानसिक बीमारी और उपाधि भावात्मक बीमारी। जब तक भावात्मक बीमारी का समाधान नहीं होगा, शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहेगा। जब तक भावात्मक हिंसा की वर्जना नहीं होगी, तब तक कायिक हिंसा भी कम नहीं होगी। पूर्ण समाधि का वरण करने के लिए हिंसा से उपरति आवश्यक है।
परिवर्तन की दृष्टि से प्रेक्षाध्यान प्रक्रिया एक महत्त्वपूर्ण प्रविधि है। इसके नियमित प्रयोग से निश्चित परिवर्तन घटित होता है। महाप्रज्ञ का यह मंतव्य रहा-हमारी चेतना जब बदलती है तब
हृदय परिवर्तन एक विमर्श | 329