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को वही जी सकता है, जिसका अपने आवेश पर नियंत्रण है। सौभाग्य मानता हूँ कि मुझे सदा संतुलित रहने की कला प्राप्त है। इसलिए मैं अहिंसा का जीवन जीने में सफल बना हूँ।' यह उनके कर्मक्षेत्र की प्रामाणिकता का उत्कृट नमूना है। विमर्शतः दोनों ही महापुरूष अपने-अपने कार्यक्षेत्र में पूर्ण निष्ठा और समर्पण भाव के साथ गतिशील देखे जाते हैं। अतः उनका कार्य क्षेत्र एक दूसरे से भिन्न होने पर भी कर्म कौशल में भेद खोजपाना कठिन है। रचनात्मक कार्यक्रम : उपदेश-प्रचार अहिंसा की पृष्ठभूमि में गांधी ने देश के उज्ज्वल भविष्य हेतु रचनात्मक कार्यक्रम को अपने हाथ में लिया। उनका मानना था-जब तक देश की जनता कर्मशील एवं सुशिक्षित नहीं होगी तब तक स्वराज्य का संकल्प आकार नहीं ले पायेगा। चिंतन की क्रियान्विति में स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रचनात्मक कार्यक्रम को बनाया। इसके उपक्रम थे
• अस्पृश्यता निवारण . संपूर्ण मद्यनिषेध . हिन्दू-मुस्लिम एकता . चरखा, खादी-ग्रामोद्योग के रूप में सौ फीसदी स्वदेशी और . सात लाख गाँवों का संगठन।”
सभी पहलुओं का गांधी ने सटीक चित्रण किया। प्रथम के संबंध में वे कहते-अछूतों की स्थिति सुधारने के लिए यह जरूरी नहीं है कि उनसे उनके परंपरागत पेशे छुड़वाये जाये अथवा उन पेशों के प्रति उनके मन में अरुचि पैदा की जाये। ऐसा नतीजा पैदा करने के लिए की गई कोशिश उनकी सेवा नहीं, असेवा होगी। बुनकर बुनता रहे, चमार चमड़ा कमता रहे और भंगी पाखाना साफ करता रहे और तब भी वह अछूत न समझा जाय तभी कह सकते हैं कि अस्पृश्यता का निवारण हुआ। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया। जब तक हिन्दू और मुसलमानों के बीच सच्ची एकता स्थापित नहीं हो जाती, तब तक मैं दोनों से कहता हूं कि इस साम्राज्य (अंग्रेजी राज) को मिटाना असम्भव है। सात करोड़ मुसलमान और तैंतीस करोड़ हिन्दू, एकता के सिवा किसी और तरह साथ नहीं रह सकते। हिन्दू और मुसलमानों में जबानी नहीं, दिली एकता होनी चाहिए। अगर ऐसा हो तो हम एक साल में स्वराज्य की स्थापना कर सकते हैं। इस एकता की सिद्धि के लिए छात्रों से कहा-लड़कों को उर्दू और देवनागरी दोनों लिपियाँ सीखनी होंगी। आपका ऐसा करना स्वराज्य और हिन्दू-मुस्लिम-एकता, दोनों की दृष्टि से अच्छा होगा। आजादी की पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय जीवन के लिए हिन्दू-मुस्लिम-एकता खाने-पीने और सोने के समान ही आवश्यक चीज है।" इस एकता के जरिये वे पूरे भारत की एकात्मकता साधना चाहते थे।
रचनात्मक कार्यक्रम के द्वारा गांधी देश की आन्तरिक स्थिति सुधारने में जुट गये। समस्या के मूल को पकड़ा। बेरोजगारी एवं बेकारी निराकरण हेतु उन्होंने चरखा, खादी एवं ग्रामोद्योग पर बल दिया। उनका कहना था-बड़े-बड़े शहर मात्र ही सारा भारत नहीं है, भारत तो अपने साढ़े सात लाख गाँवों में निवास करता है और शहर उन गांवों पर अपनी जिन्दगी बसर करते हैं। अतः गाँवों का उत्थान अनिवार्य है। वस्तुतः गांधी रचनात्मक कार्यक्रम को अहिंसा के प्रचार का आधार मानते थे।
आचार्य महाप्रज्ञ आम जनता के आध्यात्मिक एवं नैतिक उत्थान हेत ताउम्र प्रयत्नशील रहे। पर इसका अर्थ यह नहीं है कि वे सामाजिक एवं युगीन समस्याओं से सरोकार नहीं रखते। उनके उपदेश मानव को नई दिशा देने वाले और व्यवहारिक जीवन से जुड़े हुए थे। सामाजिक परिवेश
भेद दृष्टि के आधारभूत मानक / 357