Book Title: Andhere Me Ujala
Author(s): Saralyashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 361
________________ असंग्रह का प्रशिक्षण। विकेन्द्रित अर्थ-व्यवस्था का प्रशिक्षण। • अर्थशास्त्र और विश्वशांति। . अर्थशास्त्र और स्वस्थ समाज। . अर्थशास्त्र में प्रामाणिकता का प्रशिक्षण। • संविभाग की मनोवृत्ति का प्रशिक्षण। . उपभोग की असीम लालसा के नियमन एवं उपभोग के सीमाकरण का प्रशिक्षण। महिला जगत् की अस्मिता से जुड़े दहेज का यक्ष प्रश्न महाप्रज्ञ की अहिंसक सोच से अछूता नहीं रहा। उनकी दृष्टि में दहेज की समस्या का इलाज है-करुणा का विकास, मानवीय दृष्टिकोण और संवेदनशीलता के सूत्र की अनुभूति। सुविधावादी और प्रदर्शन के दृष्टिकोण ने करुणा का स्रोत सुखा दिया है। उसे फिर से प्रवाहित करने के लिए एक अभियान की अपेक्षा है, एक आंदोलन की जरूरत है। लोभ और सुविधावाद की मनोवृत्ति व्यक्ति को कठोर बना देती है। उस कठोरता के ताप से संवेदना का रस सूख जाता है। पदार्थ और मनुष्य-इन दोनों में मनुष्य का अधिक महत्त्व है। इस सच्चाई को उजागर करना आवश्यक है दहेज की समस्या से उबरने के लिए। इस कार्य के लिए एक नयी व्यवस्था पर ध्यान केन्द्रित हो • दहेज के लिए ठहराव न करना। . दहेज का प्रदर्शन न करना। इन उपायों पर सामूहिक चर्चा और सामूहिक चिंतन होना चाहिए। दहेज प्रथा के संदर्भ में महाप्रज्ञ का आकलन था कि कभी-कभी ऐसा लगता है-विवाह धन के साथ हो रहा है, कन्या के साथ नहीं हो रहा है।....दहेज की समस्या से निपटने के लिए उनके अभिमत में-अणुव्रत समिति के अन्तर्गत एक विवाह-कक्ष का नियोजन जरूरी है। उस कक्ष का काम होगा-जनता से संपर्क करना, अणुव्रत के संकल्पों को जन-जन तक पहुँचाना और विवाह को दहेज के दानव से मुक्त करना। इसके साथ ही वे महिलाओं की आत्मनिर्भरता और क्षमताओं के जागरण पर बल देते थे। अध्यात्म के आलोक में समस्याओं का समाधान उनकी प्रशस्त शैली का सबूत है। मनुष्य की मूल प्रवृत्तियाँ-क्रोध, अभिमान, कपट, लोभ, भय, शोक, घृणा, काम-वासना, कलह-इनसे उत्पन्न होने वाले दोषों का नियंत्रण या शोधन आध्यात्मिकता से ही हो सकता है, इसलिए समाज में उसका अस्तित्व अनिवार्य है। इस मंतव्य की पुष्टि में उनका स्पष्ट अभिमत रहा है कि आध्यात्मिकता से भले ही समाज का रूप-परिवर्तन न हुआ हो, किंतु उससे सत्य के प्रति आस्था की सृष्टि हुई है। चरित्र और नैतिकता के प्रति जो आस्था है, वह आध्यात्मिकता का ही प्रतिफल है। आध्यात्मिकता का अंकन संख्या से मत करिए। उसका अंकन गुण-मात्रा से करिए। यह देखिए वे लोग कैसे हैं, जिनमें आध्यात्मिक विकास हुआ है। जिन विचारधाराओं ने मनुष्य को भौतिक इकाइयों में विभक्त किया है, वे सब काल्पनिक और सामयिक हैं। आध्यात्मिकता का प्रतिबिम्ब मानवीय विभक्ति नहीं किंतु एकता है। उसके अनुसार भौगोलिक, जातीय, सांप्रदायिक, भाषायी-ये भेद अस्वाभाविक हैं, एकता स्वाभाविक है/आध्यात्मिक व्यवहार की स्वीकृति के मुख्य अंग हैं भेद दृष्टि के आधारभूत मानक / 359

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