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अहिंसा विकास के पक्षधर हैं किंतु सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्रों में भी समुचित रूप से अहिंसा के विकास पर बल देते रहे हैं। गांधी का अहिंसा प्रयोग प्रायः सामूहिक रहा। व्यक्तिगत स्तर पर उन्होंने स्वयं अहिंसा के कई प्रयोग किये पर महाप्रज्ञ ने मनुष्येतर मूक प्राणियों-प्रकृति के कण-कण से तादात्म्य
स्थापित करने पर्यंत बल दिया है। गांधी और महाप्रज्ञ के अहिंसा विषयक विचारों में अनेक समन्वय सूत्र गुंफित हैं। मानव के समक्ष आज अस्तित्व का संकट उपस्थित हो रहा है। ऐसी विषम परिस्थिति से उबरने के लिए मनीषियों द्वारा निर्दिष्ट अहिंसा का मार्ग आशा की नई किरण है। दोनों मनीषियों के अहिंसक चिंतन की समन्वित प्रस्तुति, प्रयोग और समाचरण विश्व मानव को संरक्षण देने में समर्थ है। अपेक्षा है उसके व्यापक प्रयोग और प्रशिक्षण की।
350 / अँधेरे में उजाला