Book Title: Andhere Me Ujala
Author(s): Saralyashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 354
________________ साधना है, जिसके द्वारा मैं अपनी आत्मा को शरीर के बन्धन से मुक्त करना चाहता हूँ । विश्व के नश्वर राज्य की मुझे कामना नहीं है । मैं तो उस स्वर्ग राज्य के लिए साधना में लीन हूँ जिसे मुक्ति कहते हैं। अपने ध्येय की प्राप्ति के लिए गुफा सेवन की मुझे आवश्यकता नहीं दिखती । गुफा तो मेरे भीतर भी मौजूद है यदि उसे मैं जान पाऊँ । गुफावासी योगी भी हवाई महल की कल्पना में फंस सकता है किन्तु राजमहल का वासी जनक ऐसी कल्पनाओं से मुक्त है । शरीर गुफा में और मन संसार में रहे तो गुफावासी को भी शान्ति नहीं मिल सकती । किन्तु महलों के चाक चिक्य के भीतर बसने वाले जनक को ऐसी शान्ति प्राप्त हो सकती है जिसे वे ही जानते हैं जिन्हें ऐसी शान्ति मिल चुकी हो। मेरे लिए मोक्ष का मार्ग स्वदेश व निखिल मानवता की सेवा का मार्ग है। मेरी यात्रा मोक्ष और सनातन शान्ति की ओर है। देश-भक्ति तो इस यात्रा का पथ है । इसलिए मेरी दृष्टि में राजनीति धर्म से भिन्न नहीं हो सकती । राजनीति को सदैव धर्म की अधीनता में चलना चाहिए । धर्महीन राजनीति मृत्युपाश के समान है क्योंकि उससे आत्मा का हनन होता है । यह अहिंसा और राजनीति की समन्वित साधना का स्पष्ट निदर्शन है जो उनकी अभिनव सोच का सबूत देती है । गांधी का राजनैतिक व्यक्तित्व उनके आध्यात्मिक व्यक्तित्व को उजागर करता है। उन्होंने अपनी मानसिकता का स्पष्ट उल्लेख किया-शुद्ध अर्थ में मैं आध्यात्मिक और धार्मिक व्यक्ति हूँ। मैंने राजनीति को माध्यम बनाया है जनता के साथ आत्मीयता स्थापित करने के लिए। उसके लिए यह सबसे बड़ा माध्यम है, इसलिए इसे मैंने चुना है । किन्तु मेरी कोई भी राजनीति, समाजनीति, अर्थनीति अध्यात्म से पृथक नहीं हो सकती। अगर अध्यात्म से पृथक् है तो वह मेरे लिए कचरा है, धूलि है, किसी भी तरह से वह मेरे लिए उपयुक्त नहीं है ।" प्रकट रूप से गांधी ने राजनीति को कितने पवित्र भाव से अपनाया था। यह उनके कथन से जान सकते हैं। राजनीति के क्षेत्र में अहिंसा की शक्ति पर संदेह करने वालों से कहा- 'मेरी अहिंसा की पद्धति कभी शक्ति को घटा नहीं सकती, बल्कि संकट के समय, यदि राष्ट्र चाहेगा, तो केवल यही पद्धति उसे अनुशासित और सुव्यवस्थित कर पाने में समर्थ बनाएगी ।" उनके ये विचार न केवल भारतीय राजनीति तक सीमित थे अपितु दुनिया के सभी परतंत्र मुल्कों के विषय में भी थे। इसका एक उदाहरण ही पर्याप्त होगा। जब मिस्त्र अंग्रेजी जुए से मुक्त होने की कोशिश कर रहा था तब उसने गांधी (अथवा भारत) से संदेश माँगा। गांधी ने शुभकामनाओं के साथ लिखा- 'यह कितना अच्छा होगा, यदि मिस्त्र अहिंसा के संदेश को अपनावे ?' भारत के निमित्त विश्व राजनीति के समक्ष उन्होंने आत्मत्याग के अलौकिक नियम को उजागर किया और बताया कि जिन ऋषियों ने हिंसा के बीच में से अहिंसा का मंत्र निकाला उनमें न्यूटन से कहीं अधिक क्षमता थी । उनकी वीरता और साहसिक शक्ति वेलिंगटन से कम नहीं थी । शस्त्रशक्ति के प्रयोग को भलीभाँति समझकर उन्होंने उसकी निःसारता देख ली और इसलिए उन्होंने इस खिन्न और श्रांत संसार को सिखलाया कि मोक्ष या उद्धार अहिंसा के द्वारा जिस तरह हो सकता है, हिंसा के द्वारा उस तरह नहीं हो सकता।' इसे सत्यापित किया - ' अहिंसा बिना खून खराबे के राजनीतिक सफलता पान का तरीका है।' दृढ़ता के साथ वे अपने ध्येय के साथ जुड़े रहे । अनेक प्रसंगों पर प्रस्तुति दी- मेरे पास कोई गुप्त मार्ग नहीं है । मैं सत्य को छोड़कर किसी कूटनीति को नहीं जानता। मेरा एक ही शस्त्र है- अहिंसा । संभव है कि मैं अनजाने, कुछ दूर के लिए गलत रास्ते 352 / अँधेरे में उजाला

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