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जाति, रंग, लिंग, सम्प्रदाय पर पलने वाले भेद-भाव को मिटाने वाला महामंत्र है- मानवीय एकता। मानवीय मूल्य ही है जो व्यक्ति-व्यक्ति के दिलों को जोड़ता है। इस मूल्य का हजारों वर्ष पूर्व आध्यात्मिक मंच से सिंहनाद हुआ-'एक्का-मणुस्सजाई'-मनुष्य जाति एक है। महावीर का यह उद्घोष दिव्य दृष्टि से अनुस्यूत है। इस आदर्श को भुलाने से ही समाज में विषमताएँ पनपी। जन्मना जाति की व्यवस्था ने मनुष्यों में ऊँच-नीच और छुआछूत की भावना पैदा की, समत्व के सिद्धांत का विखंडन किया। इस स्थिति में मनुष्य जाति की एकता का उद्घोष नहीं होता तो अहिंसा अर्थहीन हो जाती। अतः अहिंसा की पृष्ठभूमि में महावीर ने कहा-'मनुष्य कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय, कर्म से वैश्य और कर्म से शूद्र।' मनुष्य केवल मनुष्य है। वह विद्याजीवी होता है तब ब्राह्मण हो जाता है। वही व्यक्ति उसी जीवन में रक्षा जीवी होकर क्षत्रिय, व्यवसायजीवी होकर वैश्य और सेवाजीवी होकर शूद्र हो सकता है। परिवर्तनशील जाति मनुष्य मनुष्य के बीच में ऊँच-नीच और छुआछूत की दीवार खड़ी नहीं करती।42 इसका व्यावहारिक अनुशीलन विघटनकारी समस्याओं का समाधान है। आचार्य महाप्रज्ञ ने मानवीय एकता को नूतन अर्थ दिया-मनुष्य-मनुष्य के बीच घृणा और संघर्ष की समाप्ति ही इसका विकास सूत्र है।
मानसिक मूल्य मानसिक मूल्यों की प्रतिष्ठा और विकास अहिंसा की प्रतिष्ठा में सहायक है। तनाव, आवेग और अपने प्रति निराशा की भावना एवं परिस्थितियों का प्रभाव मानसिक असंतुलन के कारण हैं। इसका सैद्धान्तिक कारण है-भावों की अशुद्धि । महाप्रज्ञ ने मानसिक स्वास्थ्य पर प्रकाश डाला। उनकी दृष्टि में जो व्यक्ति संतुलित जीवन जीता है, समता का जीवन जीता है, सहिष्णुता का जीवन जीता है, मन को आवेगों और दुश्चिताओं की भट्टी में नहीं झोंकता, वह व्यक्ति मानसिक दृष्टि से स्वस्थ होता है। मानसिक स्वास्थ्य के ये कारक ही मानसिक संतुलन के हेतु हैं।
धृति वह तत्त्व है जो व्यक्ति के मन में सदाचार के प्रति आस्था को दृढ़ करती है। शिक्षा के साथ धैर्य का प्रशिक्षण एक बालक को हिंसा से उबरने एवं उससे निपटने की शक्ति देता है। नैतिक मूल्य उच्च आदर्श समाज में प्रतिष्ठित हो इसकी पृष्ठभूमि में नैतिक मूल्यों का विकास महत्त्वपूर्ण है। नैतिक मूल्य सर्वत्र एक समान नहीं हो सकते, क्योंकि पूरे भूखण्ड में मनुष्य का व्यवहार एक जैसा नहीं। . फिर भी कुछेक ऐसे सार्वभौम मूल्य हैं, जिनका विकास कर समाज में नैतिकता को कायम किया जा सकता है।
शिक्षा के साथ प्रामाणिकता का प्रयोग नैतिक आस्था को मजबूती देता है। वचन की प्रामाणिकता, अर्थ की प्रामाणिकता और व्यवहार की प्रामाणिकता इसके विभिन्न रूप हैं। जिनके परिपार्श्व में व्यक्ति की प्रायः क्रियाओं का समावेश है। वचन की प्रामाणिकता विश्वास पैदा करती है। आर्थिक प्रामाणिकता शोषण को रोकती है। व्यवहार की प्रामाणिकता संबंधों को सौहार्दपूर्ण बनाती है।
करुणा मैत्री का प्रखर प्रयोग है। इसका संबंध पर-सापेक्ष नहीं होता। प्रयत्न पूर्वक इसका विकास किया जा सकता है। नैतिकता का आधार है-करुणा। हमारी दो वृत्तियाँ हैं-एक है क्रूरता की वृत्ति और दूसरी है करुणा की वृत्ति। करुणा का संबंध है संवेदनशीलता से। मनुष्य जितना संवेदनशील
340 / अँधेरे में उजाला