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धरातल पर न्याय कर पायेगा असंभव है । अतः जीवन के हर पक्ष में न्याय हो इस लक्ष्य से मूल्यों का मनन महत्त्व रखता है । सोलह जीवन मूल्यों का विमर्श विभिन्न श्रेणियों में किया गया है। वर्गीकृत मूल्यों की मीमांसा प्रस्तुत संदर्भ में उपादेय है ।
सामाजिक मूल्य
व्यक्ति और समाज का घनिष्ट संबंध है। जैसा व्यक्ति होगा वैसा ही समाज होगा। सामाजिक परिवेश को व्यक्ति से भिन्न नहीं आंका जा सकता । व्यक्ति का मूल्यपरक जीवन व्यवहार सामाजिक परिवेश को मूल्यवान बनाता है। प्रश्न है ऐसे कौन से मूल्य हैं जो सामाजिक संदर्भ को प्रभावित करते हैं, उसे सार्थकता प्रदान करते हैं? इस संदर्भ में कर्त्तव्य-निष्ठा और स्वावलम्बन का उल्लेख किया गया है।
कर्त्तव्यनिष्ठा सदाचार की प्रेरक शक्ति है। कांट के शब्दों में कर्त्तव्य के लिए कर्त्तव्य होना चाहिए, न दया के लिए, न अनुकम्पा के लिए और न दूसरों का भला करने के लिए। ये सब नैतिक कर्म के हामी नहीं है और उससे सम्बद्ध भी नहीं हैं। केवल मनुष्य का स्वतंत्र संकल्प उसका स्वलक्ष्य मूल्य है । इसीलिए कर्त्तव्य के लिए ही हमारा कर्त्तव्य होना चाहिए। इसमें प्रतिक्रिया की बू नहीं क्रियात्मक भाव होता है । जहाँ कर्त्तव्यबोध और दायित्व बोध होता है, वह समाज स्वस्थ होता है। 138 इस मन्तव्य में सामाजिक स्वस्थता का राज है । जिस समाज दंड और नियंत्रण की प्रधानता होती है कर्तव्य भाव सुप्त होता है वह समाज रूग्ण होता है ।
समाज का मौलिक विकास कर्त्तव्यबोध पर टिका है। महाप्रज्ञ के शब्दों में- 'जिस समाज में कर्त्तव्यबोध नहीं होता, वहाँ ध्वंस शुरू हो जाता है ।'
नैतिक जीवन की पहली शर्त है स्वावलम्बन । समाज की भूमिका में स्वावलम्बन का अर्थ यह नहीं होता कि मनुष्य दूसरों का सहयोग ले नहीं । मेरी सम्मति में उसका अर्थ यही होना चाहिए कि मनुष्य अपनी शक्ति का संगोपन न करे, जिस सीमा तक अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सके, स्वयं करे । वह विलासी जीवन को उच्च और श्रमरत जीवन को हेय न माने । स्वावलम्बन ( अपनी श्रम शक्ति) का अनुपयोग और परावलंबन (दूसरों की श्रम शक्ति) का उपयोग शोषणपूर्ण जीवन का आरम्भ बिन्दु है। शोषण स्वयमेव हिंसा है। महाप्रज्ञ के इस मंतव्य में समाज विकास का राज छुपा है।
बौद्धिक मूल्य
एक व्यक्ति में बौद्धिक विकास बहुत हो सकता है पर 'बौद्धिक मूल्य' उसमें प्रतिष्ठित हो यह आवश्यक नहीं । शिक्षा के साथ बौद्धिक मूल्य जागृत व विकसित हो इसी आशय से जीवन-विज्ञान प्रशिक्षण में 'बौद्धिक मूल्य' का समावेश किया गया है।
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सत्य का संबंध उभयपक्षी है। इसकी साधना से व्यक्ति आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों क्षेत्रों में प्रतिष्ठा अर्जित कर सकता है । यद्यपि सत्य का मार्ग कंटकाकीर्ण होता है पर जिसमें इसपर चलने का साहस है उसे सफलता निश्चित रूप से मिलती है । सत्य का विराट् स्वरूप है - काया की ऋजुता, वाणी की ऋजुता, भाव की ऋजुता, संवादी प्रवृत्ति, कथनी-करनी की समानता सत्य है । ठीक इसके विपरीत काया की वक्रता, वाणी की वक्रता, भाव की वक्रता, विसंवादी प्रवृत्ति, कथनी करनी की असमानता असत्य है । 39 सत्यमार्ग का समग्रता से अनुशीलन करना सत्य की अखण्ड आराधना है।
338 / अँधेरे में उजाला