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अहिंसक चेतना जागरण की दृष्टि से योगासन महत्त्वपूर्ण है। यौगिक प्रयोग रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाए रखने से शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य सुदृढ़ रहता है। अनेक प्रकार की हिंसात्मक दूषित प्रवृत्तियों से व्यक्ति अनायास बच जाता है। शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक दृष्टि से आसनों का अपना महत्त्व है। योगासनों के द्वारा किस प्रकार वृत्ति और भावनाओं को बदला जा सकता है, यह गंभीर अध्ययन का विषय है। योगासन का शरीर शास्त्रीय संदर्भ में आकलन किया जाये तो हिंसा का संबंध हमारे नाड़ीतंत्र, ग्रंथितंत्र और अम्लों से है। योगासन इन तीनों को प्रभावित कर उनमें संतुलन स्थापित करते हैं। असंतुलन जनित हिंसात्मक वृत्तियों के परिष्कार में योगासन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। अहिंसक चेतना के विकास हेतु योगासन के प्रयोग को व्यापक बनाकर व्यक्तित्व निर्माण का कार्य सुगम किया जा सकता है।
प्राणायाम
प्राणायाम का अर्थ है-श्वास पर नियंत्रण, श्वास का निरोध। यह प्राण संयम तथा अनुशासन का प्रयोग है।
जीवन का आधारभूत तत्त्व है प्राणशक्ति। प्राणशक्ति की कमी अनेक जटिलताओं को जन्म देती है जिसका एक प्रकट रूप है हिंसात्मक प्रवृत्तियों में अभिरुचि। प्रश्न प्राणशक्ति के विकास का है। अहिंसात्मक प्रक्रिया में प्राणायाम एक साधन है प्राणशक्ति के संवंर्धन का। जो व्यक्ति अपनी हिंसक प्रवृत्तियों-आदतों को बदलना चाहता है उसके लिए प्राणायाम बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। परिवर्तन के संदर्भ में महाप्रज्ञ का अभिमत रहा-'प्राणशक्ति जितनी प्रबल होती है, संकल्प उतना ही प्रबल होता है। संकल्प जितना प्रबल होता है, उतना ही प्रबल होता है परिवर्तन।' इसके आलोक में प्राणायाम परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण घटक है।
विभिन्न प्रयोगों की मीमांसा से यह स्पष्ट है कि प्रेक्षाध्यान एवं हृदय परिवर्तन का घनिष्ट संबंध है। प्रेक्षा का परिकर तनाव मुक्ति में अहं भूमिका अदा करता है। तनाव से बचने के लिए अब सरकार पुलिस, अर्द्धसैनिक बलों और सेना के जवानों के लिए योगाभ्यास का प्रशिक्षण दे रही है। पुलिस अकादमी और जेलों में प्रेक्षाध्यान के प्रशिक्षकों को बुलाकर जवानों को और कैदियों को ध्यान का प्रशिक्षण दिलाया जा रहा है। 35 आशातीत परिणाम निकल रहे हैं। ध्यान और अहिंसा के अद्वैतभाव को महाप्रज्ञ ने प्रस्तुति दी–'अहिंसा और ध्यान मूलतः कोई दो तत्त्व नहीं है। आत्मलीनता ही अहिंसा है और वही ध्यान है। ध्यान की गहन अवस्था में अहिंसा की उच्च भूमिका का वरण किया जा सकता है। ध्यान योग की समग्र प्रक्रिया परिवर्तन की आधारभूत कड़ी है। हृदय परिवर्तन का यह शक्तिशाली प्रयोग है।
गांधी और महाप्रज्ञ दोनों ने ही अहिंसक चेतना के जागरण में हृदय परिवर्तन को स्वीकारा। वैशिष्ट्य मात्र प्रक्रिया का है। गांधी का हृदय परिवर्तन का तरीका था आत्म त्याग-अनशन (उपवास), अथवा सत्याग्रह पूर्वक सामने वाले व्यक्ति के हृदय को छू लेना, उसे पिघाल देना, बदलने के योग्य बनाना। आचार्य महाप्रज्ञ ने हृदय परिवर्तन के लिए विभिन्न प्रयोग सुझाये हैं। उनके विचार में वास्तविक परिवर्तन रासायनिक परिवर्तन पूर्वक ही हो सकता है। इसे प्रायोगिक भूमिका पर प्रतिष्ठित करने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
336 / अँधेरे में उजाला